फऊलुन रुक्न को दो बार, तीन बार, या चार बार रिपीट करने पर अलग अलग बह्र (लय) की ग़ज़ल प्राप्त होती है।
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
122 122 122 122
इस बह्र पर एक ग़ज़ल देखिये
ग़ज़ल
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अँधेरे से निकलें उजाले में आयें।
नये साल में कुछ नया कर दिखायें।
जो ओढ़े हुये हैं ग़मों का लबादा,
उसे फेंक कर हम हँसें मुस्करायें।
जो चारो दिशाओं में खुशबू बिखेरे,
बगीचे में ऐसे ही पौधे लगायें।
न झगडें कभी धर्म के नाम पर हम,
किसी का कभी भी लहू ना बहायें।
न नंगा न भूखा न बेघर हो कोई,
चलो हम सभी ऐसी दुनिया बसायें।
अब इसकी तक्तीअ ( मात्रा गणना) करते हैं
अँ धे रे(122) से निक लें (122) यहां से का मात्रा पतन
उ जा लें (122) में आ यें (122) यहां में का मात्रा पतन
न ये सा (122) ल में कुछ (122)
न या कर (122) दि खा यें (122)
जो ओ ढ़े (122) हु ये हैं (122) यहां जो का मात्रा पतन
ग़ मों का (122) ल बा दा (122)
उ से फें (122) क कर हम (122)
हँ सें मु (122) स्क रा यें (122)
आप लोगों से आशा की जाती है कि इस शेर की मात्रा गणना करके बतायेंगे।
जो चारो दिशाओं में खुशबू बिखेरे,
बगीचे में ऐसे ही पौधे लगायें।
एक तरही मिसरा दे रहा हूँ
कहाँ खो गया वो पुराना जमाना
बह्र है
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
122 122 122 122
क हाँ खो 122 / ग या वो 122
पु रा ना 122/ ज मा ना 122
इस मिसरे में रदीफ नहीं है
मतलब जो भी ग़ज़ल बिना रदीफ की होती है उसे गैर मुरद्दफ ग़ज़ल कहेंगे।
केवल काफिया होगा
काफिया है - जमाना
सम्भावित काफिये हो सकते हैं
आशियाना, बहाना , दुखाना, सुहाना ,जलाना, कटाना , पढाना घटाना। ऐसे शब्द जिनके अन्त में आना आये
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