शोर
घर से सड़क , सड़क से चौराहा
चौराहे से राजपथ तक
फैलता शोर
बच्चों का शोर , जलसों का शोर
लुटने का शोर , बसने का शोर
नारों का शोर , हारों का शोर
मरने का शोर , जानने का शोर
शोर , हाँ शोर
जो सिर्फ कहता है , सुनता नहीं
जो सिर्फ उधेड़ता है , बुनता नहीं
जिसकी ज़बान तो होती है
पर कान नहीं
जिसकी अपनी कोई भी
पहचान नहीं
इस शोर में डूब जाता है
जीवन का हर सुर , हर साज़
रह जाती है शेष खनकती
चंद सिक्को की आवाज़
लेकिन शोर , शोर नहीं लगता
जब करके मौन इशारे
आईं नई बहारें
बाद कर कोई पुकारे
प्रीतम मिले हमारे ,
जब किसी बच्चे की किलकारी
महका दे जीवन की फुलवारी
हाँ , शोर , शोर नहीं लगता
जब एक नहर का पानी
सब के खेतों को नहलाए
जब सब मिलकर गाए
हम सब भारतवासी एक
भारत मान , हम सब की माँ
हम सब इसके बेटे नेक
हम सब हिन्दोस्तानी
एक हमारी बानी
जैसे कल - कल , छल - छल बहता
किसी नदी का पानी।
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