Monday, January 13, 2025

शहर और जंगल - शोर

 शोर 


घर से सड़क , सड़क से चौराहा 

चौराहे से राजपथ तक 

फैलता शोर 

बच्चों का शोर , जलसों का शोर 

लुटने का शोर , बसने का शोर 

नारों का शोर , हारों का शोर 

मरने का शोर , जानने का शोर 

शोर , हाँ शोर 

जो सिर्फ कहता है , सुनता नहीं 

जो सिर्फ उधेड़ता है , बुनता नहीं

जिसकी ज़बान तो होती है 

पर कान नहीं 

जिसकी अपनी कोई भी 

पहचान नहीं 

इस शोर में डूब जाता है 

जीवन का हर सुर , हर साज़ 

रह जाती है शेष खनकती 

चंद सिक्को की आवाज़ 

लेकिन शोर , शोर नहीं लगता 

जब करके मौन इशारे 

आईं नई बहारें 

बाद कर कोई पुकारे 

प्रीतम मिले हमारे ,

जब किसी बच्चे की किलकारी 

महका दे जीवन की फुलवारी 

हाँ , शोर , शोर नहीं लगता 

जब एक नहर का पानी 

सब के खेतों को नहलाए  

जब सब मिलकर गाए  

हम सब भारतवासी एक 

भारत मान , हम सब की माँ 

हम सब इसके बेटे नेक 

हम सब हिन्दोस्तानी 

एक हमारी बानी 

जैसे कल - कल , छल - छल बहता  

किसी नदी का पानी। 


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