बतरस

 बतरस 


ज़िंदगी में जो काम दौलत से पूरे नहीं किये जा सकते उन्हें बतरस से पूरा किया जा सकता है।  आख़िर बतरस है क्या बला ? जी हाँ , बतरस या'नी बातों का रस। हम  सभी अक्सर एक दूसरे से बाते करते रहते हैं और जब किसी से बात नहीं करते तो ख़ुद से ही बातें करने लगते हैं। 

बात ही बात में आपको बता दूँ कि बतरस एक ऐसा रस है जिसके बिना ये ज़िंदगी सूनी है। हिन्दी कविता में ९ रसों का उल्लेख मिलता है -

श्रृंगार रस ,वीर रस ,करुण  रस , अद्भुत रस , रौद्र रस , वीभत्स रस , भयानक रस , शांत रस , वात्सल्य रस और भक्ति रस। लेकिन बतरस की बात ही निराली है। उपरोक्त सभी रसों में आपको बतरस मिलेगा , बिना बतरस के कोई भी रस पूर्ण नहीं। इसीलिए बतरस के बिना साहित्य भी अधूरा  है। बतरस की एक बानगी देखें -

 बतरस -1

- आज तो बहुत सुन्दर लग रही हो। 

- अच्छा , आज ही सुन्दर लग रही हूँ , पहले नहीं लगती थी ?

- नहीं ... नहीं , मेरा मतलब है आज ज़ियादा सुन्दर लग रही हो । 

- कितना  ज़ियादा ?

- सबसे  ज़ियादा। 

- सब कौन ?

- सब , दुनिया के सब लोग। 

- क्या हूरों से भी ज़ियादा ?

- हाँ , हूरों से भी ज़ियादा। 

- अच्छा , तो जनाब हूरों के चक्कर में रहते है , जाइये ,उन्हीं के पास जाइये। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 




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