लघुकथा --- " चुनाव ".
"अरे ओ बिटुआ ! आज कोई मेला लागे का गाँव में बड़ी रैल -पैल हो री है?"
"हाँ बापू अब तो रोज ही मेला लागेगा...चुनाव आ गए ना...बापू चुनाव। कल बड़ा नेता आ रिया है म्हारे गाँव में..सारे बड़ेे बाबू लोग घूम रये हैं.. देख तो बापू कैसी सफाई हो रई है। सारे गढ्ढों में मट्टी डल रई है,अब ना पानी भरेगा ना गाड़ी धँसेगी और बापू अब तो बिजली भी ना भागेगी आठों पहर आवेगी.."
"और दावत बिटुआ.."
"हाँ..हाँ वो भी खूब मिलेगी..संग में दारू भी, बंशी चच्चा तो छक जावेंगे ..और देखना बापू हरिया बाबा का छप्पर भी नया पड़ जावेगा। देख बापू ! मच्छरों की दवा भी छिड़की जा रही है। बापू जाने है आज तो दवाखाने में डाक्टर साहेब भी बैठा है..चल तेरी आँख की जाँच करवा लाऊं.. दवा भी मुफ्त मिलेगी.."
" चल बिटुआ चल...अरे ये तो बता! ये चुनाव हर बरस क्यूँ ना होंवें जब भी ये होवें•• गाँव का तो रंग ही बदल जावे है •••"
"हा-हा-हा ••• ले आ गया बापू हस्पताल l "
अंजलि गोयल अंजू
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लघुकथा
"आग "
भूरे की ख़ुशी का कोई ठिकाना ना था. वो तो रहता ही ऐसे मौके की तलाश में था कब कहीं दंगा फ़साद हो, कोई आंदोलन हो, कब कैसे उसे हिंसक बनाया जाए? और कब उसके पौ बारह हों. आज शहर में हो रहे दंगों को देखकर वो बहुत ख़ुश था, चलो फिर कहीं हाथ आजमाने का मौका तो मिलेगा.. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी दूसरी तरफ की आवाज़ सुन भूरे के चेहरे की चमक बढ़ जाती है एकाएक बोल उठा " क्या साहब बस पाँच हजार? ठीक है साहब काम हो जाऐगा. अगले दिन पता चला मीना चौक पे भरी बस में आग लगा दी गयी .. कुछ लोग निकल कर जान बचाने में सफल हो गए कुछ आधी जली हालत में पाए गए और दो व्यक्ति जलकर खत्म हो गए. उस रात भूरे अपने घर नही पहुँचा इस डर से कहीं किसी ने मुझे पहचान तो नही लिया. अगली सुबह भूरे जब अपने घर पहुँचा तो घर के बाहर भीड़ लगी देखकर सकपका गया अंदर गया तो औरते दहाड़े मार-मार कर रो रहीं थीं और बीच में सफ़ेद कपड़े से ढका उसके बेटे का शव पड़ा था. चारों तरफ अंदर-बाहर सिर्फ एक ही चर्चा थी नाश हो मर गए इन दंगाइयों का इन आंदोलनकारियों का, जिन्होंने बस को आग लगाई, जब अपना कोई जलेगा तब पता चलेगा? भूरे को तो जैसे साँप सूंघ गया हो.. कुछ समझ ही नही आ रहा था.. पाँच हजार की ख़ुशी मनाए या बेटे की मृत्यु का शोक, उग्र हिंसात्मक आंदोलन का जश्न मनाए या
?????....
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