Wednesday, January 15, 2025

शहर और जंगल - शांति की लकीर

 शांति की लकीर 


तुम्हारी बंद मुट्ठी से 

जब छूट ही गया 

वो नुकीला पत्थर 

किसी ना किसी का तो 

फूटना ही था सर 

पर मैं 

अपनी बंद मुट्ठी 

खोल नहीं पाया 

अपने आप  को

इंसानी लहू से 

तोल नहीं पाया  

मुझे यक़ीन है 

मेरी बंद मुट्ठी 

जब कभी भी  खुलेगी 

मुझे एक नै लकीर 

शांति की 

अपनी हथेली में मिलेगी 



No comments:

Post a Comment