Wednesday, January 15, 2025

लघुकथा - कोबरा

 कोबरा 


सपेरे ने मजमा लगा रखा था। एक सफ़ेद चादर पर छोटी - छोटी बेंत की टोकरियों रखी थी।  इन टोकरियों में  अलग अलग किस्मों के साँप बंद  थे जिन्हें देखने को तमाशबीन उत्सुक थे। । सपेरा  एक एक करके साँपों को निकालता और अपनी बीन बजाता। साँप अपना फन उठा कर इधर उधर हिलता , या'नी  सपेरे की बीन की धुन पर नृत्य  करता। 1 - 2 मिनट बाद सपेरा उस साँप को वापिस टोकरी में बंद कर देता। सभी तमाशबीन ताली बजाते और सपेरे की सफ़ेद चादर पर कुछ सिक्के उछाल देते। अब सबसे खतरनाक साँप कोबरा को दिखाने की बारी थी। सपेरे ने कोबरा की शान में क़सीदे पढ़ डाले थे। तमाशबीनों की नज़रों में कौतुहल और भय उतर आया था।  सपेरे ने कोबरे साँप की टोकरी खोली और बीन बजाने लगा।  कुछ पलों को तो कोबरा अपना सर हिलाता रहा लेकिन अचानक उसने सपेरे पे हमला कर दिया। सपेरा सतर्क था  लेकिन बीन पर कोबरा का वार इतना गहरा था कि बीन का छोटा टुकड़ा साँप के मुहँ में साफ़ दिखाई पड़ रहा था।  बीन टूट गयी थी , सपेरा दूर खड़ा था और तमाशबीन नदारद थे। कोबरा को कुछ सुकून मिला  तो बीन के उस टूटे टुकड़े के साथ वापिस टोकरी में चला गया। सपेरे ने झट से टोकरी को ढक दिया लेकिन कोबरा ने पासा तो पलट ही दिया था। 


No comments:

Post a Comment