पुष्प मित्र काव्यांजलि
मित्रा शर्मा
(कविता-संग्रह)
अपनी क़लम से
मन
की सुषुप्त हिंदी के प्रति प्रेम और इसके साहित्य के उत्थान के प्रति समर्पित होने
की पिपासा जागृत हुई और हिंदी साहित्य की
ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने का इरादा कर लिया तो तमन्ना यही रही कि उस पार जाऊँ, और
पाकर ही रहूँगी अब मुकाम अपना क्योंकि मैं वो नहीं जो आसानी से हिम्मत हार जाऊँ।
इस प्रेरणास्त्रोत का जरिया मेरी सखी बनी, उसकी
दूसरों को ऊपर उठाने की आदत ने मुझ अज्ञानी को भी अंधकार से उबार कर साहित्यिक
किरणों की राहों में लाकर खड़ा कर दिया । उसी की बदौलत हिंदी साहित्य सृजन की राह
में नन्हा - सा "पुष्प मित्र काव्यांजलि"
दीप प्रज्वलित किया है। इस दीप में कभी साहित्य समूह द्वारा दिए गए विषय पर तो कभी
अपने मन में उठे ज्वार भाटा तो कभी कोमल भावनाओं के समावेश की आहुति दी है। आप सभी
हिंदी साहित्यिक प्रेमी सज्जनों का स्नेहिल नज़रिया मिलने के कारण ही आज यह कर पाई
हूँ । आप सब के हाथों में इस "पुष्प मित्र" को सौंप रही हूँ , मेरे
मेहनत के पौधे में एक दिन सफलता के फूल भी महकेंगे, बदलेंगी लकीरें हाथों
की तब और अभिलाषा के सितारे भी चमकेंगे। यह तभी संभव होगा जब आप सब साहित्य गुणी जन एवं पाठक गण की अनुकम्पा का इस
काव्यात्मक पुष्प-मित्रा को स्नेहिल स्पर्श मिलेगा।
सादर
मित्रा शर्मा
मूह , मध्यप्रदेश
भारत
Title of the book - पुष्प मित्र काव्यांजलि ( Pushp Mitr Kavyanjli )
- Poetry by Mitra sharma
पुष्प मित्र काव्यांजलि ©
– Mitra Sharma
Language – Hindi
E- Book , Edition – 1st
Year of Publication – 2024
Cover Page Photograph –
Pixabay
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book’s title - पुष्प मित्र काव्यांजलि
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actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental.
1
वीरांगनाएँ
वह शहीद की माँ
अभी जो बिलख रही है
वह , वीरांगना
उसने अपने बेटे को
वीरता सिखलाई ।
बड़े प्यार से हँसते -हँसते
देश के लिए की थी उसकी विदाई ।
वह शहीद की बहिना
जो कोने में सिसक रही है
वह तो ऐसी वीरांगना
जो राखी के उपहार में
भारत माँ का अरमान माँग रही थी।
वह जो शहीद की पत्नी है
अभी पत्थर - सी बैठी है
उसे नहीं विधवा कहो
वह कहलाएगी वीरांगना
उसने ही तो आरती सजा कर
पति का तिलक किया था
मुस्कुराकर किया था विदा
असीम प्रेम के साथ
देश प्रेम को भी जिया था ।
यह देश वीरांगनाओं से
नहीं कभी खाली रहेगा ।
लिखी जाती रहेंगी
उनके त्याग की कथाएँ
गाता रहेगा पवन और सारी दिशाएँ ।
**
2
कृष्ण न कहो !
कान्हा हूँ राधा ! कृष्ण न कहो
सखा हूँ तुम्हारा पराया न करो।
ना कृष्ण ! तुम कान्हा कहाँ रहे
वो माखन मिश्री के भोगी न रहे।
कान्हा होते तो तुम सुदामा के पास जाते
सुदामा कुछ कहने तुम्हारे पास न आते।
आज सूनी है गोकुल की गलियाँ
विरह में व्याकुल, अधखिली हैं कलियाँ।
अब तुम्हारा गले में वो फूलमाला नहीं है
अब तो हीरे मोती की माला चमक रही है ।
कभी तुम्हारे हाथ में बाँसुरी हुआ करती थी
उसकी धुन पर मैं सुध बुध खोया करती थी।
तुम्हारे हाथ में तो अब सुदर्शन चक्र आ गया है
तुम्हारा नाम भी तो चक्रधारी हो गया है।
राधे ! तुम अपने शब्द बाणों से न बेधो मुझे
दिन रात स्मृति में हो, कैसे भूलूँगा तुझे ।
कृष्ण ! मैं तुम बिन हमेशा अधूरी
तुम बिन कोई आस न होती पूरी।
तुम मेरे अंतर में बसे हुए हो
हर श्वांस में रचे-बसे हुए हो ।
राधे ! तू मांग ले इच्छा जो मन में हो
दूँगा सब कुछ जो भी तेरे मन का हो।
हे कृष्ण ! विनती यही कि सब
हमारे प्रेम के गीत गाएँ
राधा कृष्ण का प्रेम
जगत में अमर हो जाए।
अब तो सुना दो मुझे तान अपनी मुरली की ,
भक्ति के रस में डूब जाऊँ अपने बिहारी की।
विलक्षण था वो पल धरा भी थरथरा गई
कान्हा की मुरली की तान में राधा समा गई।
**
3
देख माँ
अमिट कहानी लिख डाली है बेटों ने,
तेरी लाज बचाने क़दम बढ़ाए है बेटों ने।
सोंधी ख़ुश्बू तेरी माटी की महक गई ,
तेरे रक्षा के लिए जान भी क़ुर्बान गई।
मनाते है हम दीवाली घरों में बैठ कर,
वो खेलते है होली सरहदों पर जा कर।
जब दुश्मन अपनी पंख फड़फड़ाते हैं ,
तब वीर डटकर अपना लहू बहाते हैं ।
दाँव-पेच खेल कर कायरों ने हराने को ,
शूरवीर हारते नहीं आंखे चार कराने को।
**
4
मेरे राम आएँगे
भील कुल की थी वो कन्या श्रमणा उसका नाम था
अपनी निष्ठा - आराधना से कहलाई शबरी माता ।
पशु बलि रोकने को मन में ठानी थी
अपना घर छोड़ चल दी तब वो मानी थी।
महर्षि मतंग के आश्रम में उसने जगह पाई थी,
गुरू भक्ति में लीन हो गुरुकृपा हासिल की थी।
मतंग मुनि के अंतिम क्षण में जब देव लोक जाने लगे
ज़िद करने लगी मुझे भी ले चलो , दोनों रोने लगे।
यहीं रुको पुत्री ! ज़िद न करो तुम्हारे राम आएँगे
प्रतिक्षा करो, धीर धरो , तुम्हारे भगवान आएँगे ।
गुरू के आदेश मान शबरी प्रतिक्षा करती रही
राम के लिए सदियों तक राहों पर फूल बिछाती रही।
कुटिया में चरण पड़े राम के नवधा भक्ति पूरा हुई,
अश्रु धारा फूट पड़ी कंठ नली अवरुद्ध हुई ।
गुरू के वचन सत्य हुए शबरी के राम आए,
सबरी के जूठे बेर भगवान ने चुन-चुनकर खाए,
**
5
माँ
जन्नत की ख़ुशियों की चाहत रखते रखते,
भूल गए कि हमारी जन्नत हमारी माँ थी।
जीवन के आपा धापी में दौड़ते दौड़ते,
यह नहीं समझ पाए कि आखिर माँ क्या थी।
तुम रखती थी कलेजे से लगा कर मुझे ,
बिना सौदा किए प्यार बरसाती थी तुम मुझे।
बहुत रुला लिया ऐ ज़िंदगी तूने,
माँ की आँखों से ओझल क्या हुए थे ।
परवाह करने वाले की कमी नहीं थी राहों में,
मतलब के फ़रिश्ते थे जैसे नाग लिपटते बाँहों में।
तेरे हर दुआ क़ुबूल हो जाती शायद,
मेरे तक़दीर को चुनौती देती हो तुम शायद।
क्यों भुल जाते है तेरे अहसानों को,
ज़िंदगी के सफलता के पीछे के तेरे अफ़सानों को।
शर्म क्यों आती यह कहने में,
हम माँ के साथ रहते है यह जताने में।
तेरे आँचल की छाँव पर पल बढ़ कर खड़ा हूँ ,
खड़ा हूं माँ , बस तेरे बिना लड़खड़ा जाता हूँ ।
ख़ुद गीले में सो कर तूने गरमाहट दी थी,
मेरी हर मुश्किल तूने आसान की थी।
रह रह कर आती है याद वह बचपन,
घर घर न था , स्वर्ग था आँगन , उपवन।
जब ज़िक्र तेरा सुनता हूँ गला रूंध जाता है,
सिसकती हुई साँसों को रोक नहीं पाता हूँ ,
घुटन - सी होती है रो नहीं पाता हूँ ।
भीड़ में भी तेरे बिन अकेला पाता हूँ ।
तेरी झुर्रियों वाला चेहरा बहुत याद आता है,
कुछ कर नहीं पाने का मलाल खाता है ।
**
6
नारी की महिमा
वरण करती है जिसको, तारती है नारी
विपरीत परिस्थिति में भी अडिग रहती है नारी।
नारी तू, नारायणी का मिला वरदान है
उच्च कुल की हो चाहे दानव की संतान है ।
मंदिरों में माँ के रूप में पूजी जाती है ,
पर हैवानों से कभी घर,
कभी बाहर अपमानित होती है।
सहकर कठोर यातनाएँ भी निभाती रीत से है
जो बैठ गया हृदय में निभाती उसे प्रीत से है ।
बंदिनी रावण की रही,
मन राम के प्रति निष्ठ था,
सर्वगुण सम्पन्न होने पर भी भाग्य- लेख रुष्ट था।
सती सावित्री, सती दयमंती,
सती अनसुईया ने,
अपने त्याग से दिया उदाहरण प्राचीन भारत से ।
हज़ारों पार्वती और सीता को जागना होगा
नारी शक्ति महान है यह चैतन्य जगाना होगा ।
**
7
होली
आ जाओ सखि मेरी
फागुन आया है
हम बाँट लें ख़ुशी
फागुनी छाया है।
तेरे हूर से चेहरे पर
हज़ारों रंग छाए है
इंद्र धनुष ने भी
अपनी छटा बिखेरी है ।
बैर भुला कर हम
गले लगाएँगे
मस्त हवाओं में
फागुनी गीत गाएँगे।
इन दिली अरमानों को
तुम पूरा कर देना
आपसी मेल से
भाईचारा बढ़ा देना।
यही होली का अर्थ है
यह बात जान लो
दामन थामा है आज
प्रेम का गुलाल लो।
छोटा - सा दिल मेरा
समुंदर समाया है
भाव से भरा है यह
तुम्हे दिखाया है।
**
8
जीवन साथी
जब तुम कहीं निकलते हो
मैं कहती हूँ मुझे भी साथ जाना है
पर तुम अनसुना कर निकल जाते हो
तब तुम मुझे साथी नहीं, पराया नज़र आते हो।
मेरी दवाई खत्म हो जाती है
तुम रोज बाज़ार जाते हो
पर दवाई लाना भूल जाते हो
तब तुम मुझे लापरवाह नज़र आते हो।
मेरे अनुपस्थिति में बच्चों के
मेरेख़िलाफ़ कान भरते हो
मेरे ही बच्चों को मुझसे दूर करते हो
तब तुम मेरे हीरो नहीं,
जीरो नज़र आते हो।
हमारे अपने हाथों से संवारे घरौंदे को
तिनका तिनका बिखेर कर जाते हो
बिना बात के रोज़ नया लांछन लगा देते हो
तब जीवनसाथी नहीं,
सिर्फ पुरुष नज़र आते हो।
जब कोई बडी मुसीबत आती है
तुम्हे बताने को मन बेचैन हो जाता है
सुनकर तुम कहते हो ‘ मैं हूँ ना ‘
तब तुम भगवान नज़र आते हो।
**
9
अभिभूत होता हूँ
दिन भर के काम से
थक हार
घर लौटता हूँ ।
देखते ही माँ कह उठती हैं
"आ गया बेटा ?"
यह सुन अभिभूत होता हूँ ।
जब काम से शहर से दूर जाता हूँ
तब माँ सुबह - शाम
फोन पर पूछती हैं
"कुछ खाया बेटा?"
वह सुन अभिभूत होता हूँ ।
जब मुझे बुखार आ जाए
माँ, पूरा घर सर पर उठाती हैं ।
बार - बार माथे को छूती
हिदायतें देती हैं ।
ठंडी पट्टी बदलती
दवाई नियम से पिलाती ।
और फिर मेरे ठीक होने की प्रार्थना सुन
अभिभूत होता हूँ ।
मेरी ग़लती न हो
और फिर भी कोई मेरे ख़िलाफ़ हो तो
मेरे पक्ष में मां खड़ी हो जाती हैं ।
फिर किसी की नहीं सुनती
मुझे सही सिद्ध करती हैं
यह देख अभिभूत होता हूँ ।
माँ के चेहरे पर शिकन नहीं होती
अपनी थकन को सरलता से छिपाती
ख़ुशी से हर काम कर जाती हैं ।
उनकी दुआओं का हाथ
कभी ख़ाली नहीं होता
यह देख अभिभूत होता हूँ ।
**
10
जिस रास्ते पर...
जिस रास्ते पर तुम चल रहे थे मौन से स्वीकारा
जीवन के उल्लास न्यौछावर कर के गुम हुआ सितारा।
जीवन राह आसान नहीं यह कैसे समझाऊँ
दिल विच पत्थर रख कर मन को कैसे मैं रिझाऊँ
जिस रास्ते पे.....
उलझा है मन बेदर्दी पर्ल लेकर ख़ामोशी
उठता है धुंआ आग के बिना छाती है मदहोशी,
जिस
रास्ते पर…..
सावन का महीना बरसता बादल फिर भी मन प्यासा है
मुट्ठी के रेत फिसलता गया ना रहा पास में
जिस रास्ते पर....
**
11
मै सजीव..
मैं निर्जीव नहीं सजीव हूँ स्वांस देता हूँ ।
ज़हर पी ज़िंदगी की नई आस देता हूँ ।
ह्रदय विदारक हर दृश्य इतना चहुं ओर ,
मनुज बढ़ रहा विनाश की राह की ओर।
जाग, मानव समय नहीं अब तेरे पास,
मलता रह जाएगा हाथ कुछ न होगा पास।
मत कर दोहन प्रकृति के इस उपहार को,
समझ ले, अर्थ सृष्टि के उदार भाव को।
बचा ले नदी,
मत पी इसे, ख़ुद मिट जाएगा,
सींच ले बचे पौधों को तो जीवन बचा जाएगा।
**
12
पापा
माँ कहती है
जब दुनियां में मैं आया था
आप बहुत ख़ुश थे
मेरी किलकारी सुन
ख़ुशी के आँसू से भीगे थे।
फिर धीरे-धीरे अपने सपनों को
छोड़ अधूरा
मेरे सपनों में खो गए।
मेरा सब कुछ करने
अपने आप को भूल गए।
आप आसमान - सा हृदय लिये
सदा छाँव देते रहे।
देते रहे सदा आशीष
ख़ुशी के पल लुटाते रहे।
मेरी ज़रूरत पूरी करने
और ज़्यादा काम करने लगे।
मेरे सपनों के पंख न टूटे
यह सोच आधी नीद सोने लगे।
मेरे हज़ारों सवाल पर भी
जवाब नरमी से देते रहे।
लेकिन
आज आपकी भूलने की बीमारी से
दो सवालों पर ही
झिड़क देता हूँ।
आपके कंपकंपाते हाथों से जब
चाय का कप थरथराता है
तब मन ग़ुस्से से भर जाता है।
कभी बैठा सोचता हूँ
कि आप जैसा हो पाना
कैसे संभव होगा?
आप जैसा धैर्य पाने
जीवन में किस तरह चलना होगा।
**
13
देशभक्ति गीत
वीरों की गाथा गाते रहो
बलिदान उनका याद करते रहो।
न झुके कभी तिरंगा अपना फ़हराता रहे शान से
इसकी ख़ातिर लड़े थे जांबाज़ सीना तान के।
तिरंगा अपना झुकने ना दो
गौरव इसका बढ़ाते रहो।
करती है धरा रुदन - क्रंदन छाती चीर के
पटा था आँगन शहादत के लहू से आँसू के नीर से।
आंधी तूफ़ानों से खेलते रहे
देश के आन पे मरते रहे
वीरांगनाओं से ख़ाली नहीं है यह मेरा देश महान
त्याग की कथा गाता रहेगा पवन और जहान
वे सब नारी मर्दानी थी
बलि पथ चलीं और वरदानी थी।
वीरों की गाथा गाते रहो
बलिदान उनका याद करते रहो।।
**
14
मर्दानी
वे सब नारी थी
फिर भी मर्दानी कहलाई
कभी लक्ष्मीबाई
कभी दुर्गावती के रूप में
शत्रुओं को मुँह की खिलाई ।
तलवार लेकर खड़ी हो गई
कोई भी से बांध न पाया
रणचंडी कहो या दुर्गा कहो
कोई राक्षस बच न पाया।
पन्ना धाय बन जन्मी तो
पुत्र का बलिदान किया
कोई क्या उससे छीनता
पद्मावती ने जौहर किया ।
स्वतंत्रता की वीरांगना
चलती रही बलि पथ पर
गाती रही आग के गीत
लाठी गोली से ना घबराई ।
भारत भूमि की वीर बेटियाँ
आसमान से टक्कर लेती है
आंधी तूफ़ान से खेलती
देश की आन पर मरती है।
**
15
साथी
इस दिल के रिश्ते का कोई नाम नहीं है
अब इसके बग़ैर जीना भी आसान नहीं है।
अब तो किसी और चीज़ की चाहत नहीं है
उनसे बड़ी ज़िंदगी में कोई राहत नहीं है।
उनके जीवन में कोई ग़म न आए
दुआ माँगती, वे हमेशा मुस्कुराए ।
होश तो अब संभला है,
उन्हें पाने के बाद
हमसाया बनकर चलते आए हैं मेरे साथ।
कभी अंधेरे में रोशनी, चिराग़ बने हैं
कभी खिलती धूप में सुहानी छाँव बने हैं।
कभी होंठों की मुस्कान बने हैं
कभी हृदय का प्यारा अरमान बने हैं।
इसी तरह वे मेरी आँखों में बसे रहें
वे साथी मेरे,
प्यार यूँ ही बरसाते रहें।
**
16
रिश्ते
झाँका ही नहीं उन्होंने
इन आँखोँ में
जिसमे समुन्दर लहराता था।
न जाने कैसा रिश्ता था
उनका
जो सागर जैसा ना
गहरा था।
यादें खड़ी हो जाती हैं
सपनों में कभी-कभी।
और दफ़न कर दिए
प्रेम के क़िस्से
पन्नों पर पर हर्फ़ बन
उभर आते हैं।
हम सितारों से पूछा करते हैं
इन
वीरान रातों के बारे में।
उन्हें क्या मतलब होगा,
वे तो अपनी ज़िंदगी
बिताते हैं
अपने चाँद की बाँहों में।
**
17
मीरा वेदना
प्रियतम !
अब तो चले आओ
आरज़ू है मेरी
मान भी जाओ।
चाहा है सब कुछ मिटा कर
अब तो
अपना लो बाँहें फैलाकर।
ढूँढती हूँ तुम्हें
तुम कहाँ हो मेरे प्रियतम !
देखने को
आँखे तरसती है
है यह प्रीत ,
सदियों पुरानी
आँखें रिमझिम बरसती है।
बंद कर आँखे,
तूझे ही देखती हूँ।
अद्भुत नज़ारा है प्रियतम,
रहस्य से भरे
एक अनन्त संसार में
तेरे साथ हर लम्हा गुज़ारती हूँ
**
18
प्रियतम
बंध गई तेरे प्रीत में प्रियतम
सुर से अलंकृत ये गीत- सरगम
रिश्ता नहीं ये पल दो पल का
जन्म-जन्म का है ये गठबंधन।
रीति -रिवाज़ों से भी बढ़कर हमनें
अन्तर्मन से प्यार किया है।
शब्दों में कैसे बँधे
मिलन की लालसा और मन की व्यथा
शूल सा चुभता विरह
और घायल मन की दशा।
लेकिन कहीं कोने से
मन
दिलासा देता है।
तमन्नाएं जो बेहिसाब हैँ
इन जागती आँखों में।
आएँगे प्रियतम
होगा मिलन
सपनों को आकार मिलेगा।
**
19
रातों की नींद
नींद से क्या शिकवा
जो आती नहीं रात भर,
कसूर तो जागती आँखों के सपनों का है,
जो रात भर सोने नही देते।
कई सपनों के अंश
आँखों में आ जाते हैं,
नींद नहीं आती है तब,
जब उनका
ख़्याल आ जाता है ।
उनका ख़्याल आता है
जो सड़क पर सोते हैं
जिनका हमसाया छूट गया है
वक़्त ने उनसे सब कुछ छीन लिया है।
उनके ख़्याल
नींद उड़ा देते हैं।
हम चाँद सितारों से दुआ करते हैं
अच्छे नहीं लगते उनके आँसू
जीने को ही सज़ा बना देते हैं।
**
20
विश्वास
जीवन के कुछ संबंध
ऐसे भी होते हैं
जो किसी वैभव के
मोहताज नहीं होते हैं।
वे
आपसी प्यार, स्नेह और विश्वास की
बुनियाद् पर टिके होते हैं।
उनकी चाहतों के सिलसिले
यूं ही ख़ामोश चलते जाते हैं।
अगर वे
पास ना आ सकें
तो भी
ना कभी दूर होते हैं।
बहुत मजबूत होती है
उनकी
बुनियाद।
इन रिश्तों में
लफ्ज़ो के ख़ूबसूरत
सलीके होते हैं।
इबादत भी होती है
और
सच के उजाले भी होते हैं।
सच के धागों से बने ये रिश्ते
उम्र भर मजबूत रहते हैं।
एक दूजे की ख़ुशी के लिए
हरदम मौजूद रहते हैं।
**
21
तुम बदलना संसार
धागा राखी का बांधकर
करना यही प्रतिज्ञा
कहीं न हो पाए हमसे
मानवता की अवज्ञा।
दया करुणा अपनाकर
करना तुम सहयोग
हिंसा और घृणा से तुम
रखना सदा वियोग।
स्नेह का बंधन है राखी
कभी न टूटने देना
हाथ थामा जो प्रभू का
कभी न छूटने देना।
एक प्रभू के संतान
रखना आपस में प्यार
पवित्रता की प्रतिज्ञा से
बदलना तुम संसार।
कष्ट किसी पर आए तो
मददगार बन जाना
किया जो वादा राखी पर
उसे पूरा निभाना।
इसी प्रतिज्ञा की हर रोज़
पालना तुम करना
शुद्ध कर्मों से अपने
भाग्य में पुण्य भरना।
स्नेह की रक्षा बंधन
बंधे ऐसे कस कर
हमारे कारण रोये न कोई
जिए सब हँसकर।
यही संदेश देता है
रक्षा बंधन का त्योहार
दया करुणा जगाकर
करो सब पर उपकार।
**
22
तू कैसे जिएगा
कटते पेड़ ध्वस्त वन कानन
न रहे पेड़ तो पानी कैसे बचेगा?
सूखते नदिया सूखे खलिहान
मानव! तू कैसे जिएगा ?
धरती का आंचल तपती रेत
मरुस्थल भूमि बंजर खेत
फिर तू कैसे जिएगा ?
संवार ले माँ को
रूठे प्रकृति को
न कर दोहन नदियों को
मत पी इन्हे
फिर कैसे जिएगा ?
**
23
हाँ,
मैं नारी हूँ
जब भ्रूण बनकर आई थी
दादी के मन में यह बात आई थी
मेरा कुल का चिराग़ है या मनहूस
माँ ने अपनी वेदना छुपाई थी।
माँ कहने लगी भगवान से
आने दो इसको संसार में
मेरा हिस्सा है यह अनोखा
सिचूँगी अपनी कोख़ में ।
मैने सोचा आऊँगी ज़रूर आऊँगी
सब को समझाने के लिए
सबकी सोच को बदलना है
मै अब हार नहीं मानने वाली।
नारी होकर नारी पर ही अत्याचार
कभी होता दुर्व्यवहार
कभी लगते उसपर लांछन
कभी मिलता व्यभिचार।
मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली
सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली।
दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली
लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली।
हाँ, मैं नारी हूँ !
हाँ मैं सरस्वती,
वीणावादिनी हूँ
ज्ञान देने वाली
मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली।
द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली ,
सीता बन सहन करने वाली ।
हाँ, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !!
**
24
घरौंदा
टूट गया है वह आशियाना
जो शाख़ पर बना था
तिनके -तिनके जोड़ कर
अपना घर जोड़ा था।
बिखर गया झटके से
हवाओं से टकरा कर
उजाड़ दिया अस्तित्व को
घरौंदे को बिखरा कर।
प्रकृति ने भी झेला है
बहुत थपेड़े खाए है
निर्मम मानव के
अत्याचार सहे है।
हवाओं से क्या डरें
तूफ़ान को मात देंगे
अभी पंखों में जान है
हौसलों को सार देंगे ।
**
25
ज़िंदगी के पन्ने
कुछ पन्ने थे पुराने ज़िंदगी के, कुछ नए कोरे,
कोई थे सुनहरे पन्ने ,कोई मनहूसियत से भरे।
गिरेबान में झांका तो, मिले कई ऐसे पन्ने,
चाहत रखते - रखते, हुए पुराने कोरे पन्ने।
किसी में थे खिलते सपने , किसी में मुरझाते ख़्वाब थे,
खोजता रहा,ढूंढ़ता रहा,
पन्नो में दबे कई राज़ थे ।
त्याग था, समर्पण था , पर ख़ामोश थे वो पन्ने,
उम्मीद कि किरण में जीते रहे, वो भरोसे के पन्ने।
कई पन्नों के साथ आस ,हवाओं में उड़ गई ।
उड़ गए अरमान,
बिखर गई थी तस्वीरें कई
कई पन्नों धूल में मिल गए ,फट गए थे कुछ पन्ने
लिखा न गया उनमें , भीग गए अश्कों से पन्ने।
**
26
मन होता है
कभी-कभी
उड़ती तितलियों को देख
मेरा मन भी होता है कि
उड़ जाऊँ और स्वयं को
आकाश के
सप्त रंगों से रंग लूँ।
नदी को देख लगता है
निर्मल धार बनकर
कल कल बहती रहूँ।
जब मन का कोई कोना
घोर अंधेरे में होता है
तब निशा से पूछने का मन होता है
क्यों ख़ाली- ख़ाली सा है मन
कहीं कोई आशा का चिराग़
क्यों नहीं जलता है ?
उगते सूरज से पूछने का मन होता है
भोर के सँग क्यों नहीं उठती उमंग ?
मन के अंतर्द्वंद से पीछा क्यों नहीं छूटता है?
चलते रहते हैं प्रश्न
मन को दौड़ाती रहती हूँ।
मन तो आखिर मन है
कभी होता उदास
कभी कहीं ख़ुशी के पल ढूँढता है।
**
27
मलाल क्या
वक़्त जो गुज़र गया उसका मलाल क्या
मिला जो मिला नहीं मिला उसका मलाल क्या।
सीखना चाहा जो गहरे समुंदर में उतरना
मिट गए ख़ुद ही ख़ुद से पहचान करने में।
जाने दो गया , जो अपना न था गम क्या
पलकों से ओझल हुए तो अब नमी क्या ?
बिसरा दे जो ख़ताएँ की थीं वफ़ा की गलियों में
फूलों को मुरझाना है और ज़ुल्म न कर उन कलियों पर ।
**
28
मेरा भारत
यह कैसी रीत चली है
ख़ून बहाना,
भाईचारा भूल कर
दुश्मनी निभाना।
चहुं ओर अंधियारा
फ़रेब की राह पर
देश की गरिमा को
रख कर ताक पर।
जिस राधा का लहंगा
सलमा ने सिला था
चाँद - तारे भरे गोट
चुनरी में जड़ा था।
बेरंग हो गया
हलकी धूप की आंच पर
प्रेम, भावना,
सदाचार
लगे सब दांव पर।
त्रासदी और भयावह
अमानवीय काम से
बड़ी गई वैमनस्यता
धर्म-राजनीति के नाम से।
**
29
याद बचपन की
कुछ धुंधली सी याद है बचपन की
कुछ टूटी हुई निशानियाँ ,
कुछ अनकही कहानियाँ ,
बेदर्द ज़िंदगी की यादों की लड़ियाँ ।
वह परियों का देश
वह ख़्वाबों की दुनिया
वह सात समुन्दर पार राजकुमार की दुनिया ।
चंदा मामा को यह कहते सोना ,
कल सोने की छोटी - सी
कटोरी गिरा देना ।
वो भोर सुबह में कटोरी ढूँढना
ना मिलने पर उम्मीदों की चादर में तारे गिनना।
ढूँढा करती है आंखे और मन अब भी वह पल छीन ,
वह मासूम सुबह और खुशनुमा दिन।
ऐ ज़िंदगी ले चल मुझे वही बचपन में
न रहे कोई कोई खौफ़ सफ़र में ।
**
30
हिम्मत
जैसी भी आए विपरीत परिस्थिति पार कर लेंगे,
क़दम से क़दम मिला कर मुश्किलें आसान कर लेंगे
हम हिंदुस्तानी बेपरवाह नहीं हैं विपत्तियों में,
बिखरे तिनको को मिलाकर कुछ इजाद कर लेंगे
सब्र और सबूरी की अद्भुत मिसाल हैं हम,
हम घरों में बैठकर फिर रिश्तों को आबाद कर लेंगे।
ज़रूरत पड़ी तो ताले लगाकर मन्दिरों में
ख़ुद भगवान भी अस्पतालों में काम कर लेंगे
डटे हैं जांबाज़ सीमा पर और देश की गलियों में
हम घरों में दीप जलाकर दुनिया रोशन कर लेंगे।
**
31
विरहन के आँसू
तेरे इर्द गिर्द ही अब मेरी व्यथा चले
अनुराग भाव थे राह पर जो हम चले।
न समझे तुम पत्थर दिल हो लिए
तरसती उम्मीदें, आशा के दीप जले
खिलती धूप में वो चमकती थी कली,
आख़िर न मिला पानी मुरझाती चली।
रेत की तपन से झुलसता हुआ तन ,
ख़्वाहिशें अगन चढ़ा उजड़ गया चमन।
नेह की एक बूँद पाने की चाहत,
वीरान शहर मिला न कोई राहत।
धड़कन बढ़ रही मिलने को मचल ,
विरहन के अश्कों भीगा मन आँचल ।
**
32
नदी
कहते हैं सब मुझे पावनी हो
पाप नाशिनी, पवित्र दर्शिनी हो।
पर मै बहुत उदास हूँ
लोगों से बहुत परेशान हूँ।
शहर से परेशान हूँ
कचरे का ढेर लाती,
नहर से परेशान हूँ।।
सब जो बहा देते मुझ पर
उस कूड़े से परेशान हूँ।
बहती थी कभी कल-कल करते
अविरल बहती रहती शांत - सी।
सूरज-चंदा की चंचल छटा
बिखेरती रहती धरा पर
सौंदर्य की छवि - सी।
अब मलीन, निराश, बदहवास लाचार।
दोहन से दुःखी,
ढो रही हूँ,
मानव का अत्याचार।
**
33
घाव
सखी यह पैग़ाम है
किसी से दिल की बात ना करो
उधेड़ती है दुनिया बाद में
ख़ुद की ढाल बनो और धीर धरो ।
तुम्हारे हर एक आँसू पर
जुमले बनते हुए देखा है
खंज़रे हाथ में थे उनके पर
मुँह पर शुभचिंतक बनते देखा है ।
नहीं दिखाया करो घाव अपना
नमकीन - सी है सहलाव यहाँ
सीने पर लगी चोट सारे
सूखते नहीं उलझते हैं यहाँ।
**
34
सुनो कविता
क्या करूँ कविता ! तुम्हें
काग़ज़ में लिख लूँ ?
नग़मों से नवाज़ लूँ
या लफ़्ज़ों में उतार लूँ ।
तुम मेरी रूह बन
रग में बह लो
ह्रदय में रह कर
हर तार जोड़ लो।
कविता, मैं तुम्हें बनाना चाहूँ
मन की ख़ुशी
दर्द की आवाज़ भी
कभी हार, कभी जीत का ताज भी
बस तुम मुझमें बसी रहो
मेरी आवाज़ बनती रहो
कभी मुक्ति, कभी युक्ति
बनकर सदा चलती रहो।
**
35
काश
उन्मुक्त धारा होके भी
उन्मुक्त कब हो पाई हूँ
तड़पी हूँ ,मचली हूँ उछल कर,
सागर में आ समाई हूँ,
मेरे मन की गहनता को
प्रिय अगर पहचान जाते।
हैं समर्पित प्रेम मेरा
काश अगर तुम जान जाते।
दर्द गर समझ जाते
गहरे घाव न होते
चले थे जिसके भरोसे
तन्हा वीरान में छोड़ दिए
मरुस्थल में तड़पते रहे।
**
36
वजूद
स्त्री का वजूद क्या है ?
मांग में सिंदूर,
कहने को गृह स्वामिनी
मगर एहसास कुछ न होने का।
बाबुल के घर पराया धन
ससुराल में पराए घर से आई हुई।
तन हो गया किसी का
मन किसी ने छुआ ही नहीं।
कोई मन तक पहुँचा ही नहीं
रीती ही रह गई जैसे अनछुई ।
मिला ही नही मन को पढ़ने वाला
गहराई से चाहने वाला
जिसके सामने
खुल जाएँ हृदय की सारी गिरहें।
उसे कोई मिल न पाया
जिसके साथ
हँस सके बेख़ौफ़ होकर।
वासनाओं के अंधड़ से दूर
जो देह से परे करे
असीम प्यार ।
**
37
राम
धैर्य नाम राम है
अजर नाम राम है
विधि विधान राम है
सत्य नाम राम है।
विपत्तियों से लड़े
शक्तिबाण राम है
गहरे भाव से भरे
भक्ति नाम राम है।
राज से वनवास तक
त्याग नाम राम है
सहज, सरल,
अटल
महादेव नाम राम है।
मर्यादा में डटे जो
पुरुषोत्तम ही राम है
प्रतिमान दिनमान सारे
दैदीप्यमान राम है।
तुलसी का वरदान
वाल्मीकि के राम है
आदर्श का प्रतिमूर्ति
वो राम रमापति नाम है
**
38
प्रेम
एक प्यास है ताउम्र
एक कामना है प्यार की
कोई है , जिसका
भीतर से है इन्तिज़ार ।
लगता है, भेजा है कोई संदेश
उसकी साँसों की महकती ख़ुशबू
उतरती है रूह तक।
उसके होने का अहसास
पूरे अस्तित्व को झंकृत करता रहता है।
एक लम्हा भी उसके बिन
न रह पाती हूँ।
लग गई है मन को
उसकी लगन।
मुझे मालूम है वह कभी
भौतिक रूप से नहीं मिलेगा।
लेकिन, किसी को
भौतिक रूप से पा लेना ही प्रेम नहीं।
रूह से रूह के रिश्ते में
कोई शर्त कहाँ होती है?
**
39
मेरा चाँद
उस दिन चाँद चल कर
मेरे कमरे में आया था,
हसीन चाँदनी के रंग से
कमरा जगमगाया था।
उसके शबाब का क्या कहूँ
उसने ज़र्रा-ज़र्रा
खूबसूरती में डुबाया था।
उसका शबाब मेरी नीली आँखों में सिमट आया था,
जैसे आसमां ने उसे
अपने आग़ोश में छिपाया था ।
उसका प्यार मन के तारों को धड़का गया था।
सच है यारों उस दिन उसके आने पर, आसमां से चाँद
मेरे कमरे में उतर आया था।.
**
40
वीर सपूत
अमर तिरंगा जब भी यह लहराता है
मन आल्हादित हो जाता है फिर जन गण गाता है।
अमर शहीदों का पुण्य धरा है ये
देशभक्त और के देव धरा है ये।
रण बांकुरो ने अपने प्राण गंवाए थे
अपनी मिट्टी के ख़ातिर क़ीमत चुकाए थे।
सरहद पर जाकर आंखे चार कराए थे
ख़ुद मिटकर दुश्मनों की नज़र झुकाए थे।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई चारों है संतान
बना रहे है देकर सहादत भारत माँ को महान।
**
41
आशा की नई किरण
सुबह की नई किरण के साथ
हर अँधेरी रात का अंत होता है।
सुख की शुरुआत के साथ
हर दुःख का अंत होता है।
भले ही आज जीवन में,
कितना ही अँधियारा हो।
दुःख का दरिया लहराया हो,
पर होना ना उदास।
सारा अँधियारा मिट जाएगा,
सुबह की नई किरण के साथ।
हार-जीत तो कोशिशों का खेल है,
हारते-हारते ही एक दिन
विजय मिल ही जाएगी।
रखना उम्मीद को जिंदा
ना होना कभी उदास।
एक उम्मीद ही तो है जो
टूटे हुए सपनों को जोड़ देती है।
एक उम्मीद ही तो है जो
नफ़रत के अंगारों को
फूलों में बदल देती है।
कभी उम्मीद का दामन न छोड़ना
यही हमें मंज़िल तक ले जाएगी
रास्ते भले ही काँटों भरे हों
यही फूलों को भी बिछाएगी।
**
42
परिवार
🌷
वो एक मकान से थे,
धूरी बेहद मजबूत थी।
पिता की फटकार में हमारी भलाई छुपी थी।
बुनियाद थे वे खंबे जैसे अडिग मजबूत।
हमदम थे दोस्त थे वे,
अपनापन भरपूर
राम-लक्ष्मण - सा ही भाइयों का था प्यार।
घर एक मंदिर ही जीवन का आधार।
पक्के हुए मकान तो दरकने लगे रिश्ते।
लुप्त होने लगे संजीवनी से दादी के नुस्खे।
बंटा परिवार हम दो हमारे दो के नारे से
बिछड़ रहा है जैसे धारा के दो किनारे से।
**
43
बालक
आज के बालक तुम
कल देश के कर्णधार
भाई चारे के नारे का
बनना तुम सूत्रधार।
यह भारत की माटी को
सींचना तुम पसीने से
जय जवान जय किसान
सार्थक करना सलीके से
देश के लिए देना पड़े
बलिदान लहू से तो
तुम हटना नहीं पीछे
सरहद पर क़ुर्बानी से।
डगमगाना नहीं तुम
जैसी परिस्थिति आए
संवारना है माँ को
मिलकर हाथ बढ़ाए
**
44
पिता
आसपास जड़ें फैलाते मजबूत बरगद का पेड़ है पिता ,
प्रेरणा और सफलता की सीढ़ी है पिता ।
ढाल बनकर जीवन में खड़ा रहता है पिता ,
मुश्किलों से जूझ कर भी आसान रास्ता देता है पिता।
ढोता है सारी तकलीफ बच्चों का कष्ट वह पिता,
कड़कती आवाज़ में भी अंदर से मोम रहता है पिता।
सपनों के पंख लगाता है बच्चों का वह पिता,
बिना आँसू का रोकर सींचता है पिता।
**
45
अहसास हार का...
फलक तक आकर न लौट ऐ ख़ुशी
हम दीदार की आस लगाकर बैठे हैं।
ग़म के सायों से जरा दूर रह ऐ ख़ुशी
इन्तिज़ार में आँसू बहाकर बैठे हैं ।
छलछलाती आखों से विदा किया था।
तेरे शब्दों के कसीदे पे भरोसा किया था।
जब अपने ही पराये से होने लगे,
जज़्बात से खिलवाड़ करने लगे
होता रहे अहसास हार का रिश्तों में
इशारों इशारों में क़िस्से लिखने लगे ।
**
46
गुरु
नहीं कर सकते हम शब्दों से वर्णन
हे ! अतालिक तुम्हें करते हैं नमन।
तुम्हारी जादुई तोहफों को क्या नाम दूँ ?
अविरल ज्ञान की धारा को क्या मान दूँ ?
ईश तुम, देते हो ज़िंदगी के नए आयाम
अद्भुत विवेक भर देते हो देकर नया पयाम।
शिखर तक पहुंचाने में देश के कर्णधार को
रहते हो अग्रसर अटल हो या कलाम को।
महापुरुष हुए हैं जगत में प्रत्यक्ष में
ज्ञान चक्षु खोलते हो तुम परोक्ष में।
किसी कवि के कल्पना से परे हो तुम
अलौकिक उपहार हो,
प्रकाश पुंज हो तुम।
**
47
अकेला पन
यह कोलाहल भरा जहां का मेला
फिर भी इंसान का दिल है अकेला।
नयनों से बहते हैं आँसू जैसे सावन का नीर
मिटे- मिटे से यादों की लडी मन होता है अधीर।
वो सजे सपनों का प्रियतम के प्यार का
बस यादें ही रह गए मौसम इज़हार का।
यह दर्द भरी दास्तां व्यथा विरह को
निष्प्राण अंतर्मन को खोलूँ कहाँ गिरह को ।
वो कहते थे ‘मै हूँ न’ कहाँ हो तुम प्रियतम !
विरह की सिसकियां से फैला है निर्जन तम।
रेत की तपन में चलती हुई क़दम पे ,
छाले ही छाले पड़ गए झुलस गए आंखे धूप में।
पीड़ा के बीज को सींचकर उग आए और भितकर
फैल गया है ज़र्रा, ज़र्रा हृदय को रितकर।
निरर्थक आशाओं को ढोते
अमृत की चाह में ज़हर पीते ,
हाय यह जीवन बिता आंसुओं में लगाते गोते ।
**
48
हिन्दी
तुम ही तो मेरी अभिलाषा बीते ज़माने से
तुम ही हो ज़िंदगी की परिभाषा नए ज़माने में।
वो सपने बुनते गए महीन रेशों का ,
टूटता गया रिसता ही गया पुलिंदा ढांचों का।
वक़्त का पहिया फिरता ही गया अनजान राहों से,
फिसलता गया क़िस्मत जैसे अजनबी बाँहों से।
अंग्रेज़ों ने ज़ुल्म ढाए थे ख़ुद ही ढल गए,
तुम्हारी छांव में तुम्हारे अपने लाल पल गए।
तुम सुबह की लालिमा बनकर रोशनी बिखेरना,
सपने झरोंखे का ख़ुनुमा पल जन जन को देना।
तुम माँ हो मेरी तुम्हारी दुलारी हूँ मै,
हिंदी ! तुम माँ हो मेरी तुम्हारी दुलारी हूँ मै।
**
49
वह भारत कहाँ है
तेरी मिट्टी की ख़ुश्बू से सारा जग महक गया,
ख़ून की होली से रंग कर बाग़बां चहक गया।
जूझ रही है मुश्किलों से विपरीत हालत पे ,
माँ का आंचल मैला हुआ विकृति की चाल से।
धन्य तेरे लाल को तूने सींचा था प्यार से,
गूंजता था चारों ओर देशभक्ति के नारों से।
ईदगाह गाने वाला प्रेमचंद सो गया,
भाई चारा खत्म हुआ वैमनस्य आ गया।
दरारों से दरकता यह धरती की छाती को
हिंदू-मुस्लिम दो भागों में बांट रहा माटी को।
कुचल रही बेटियों की अस्मिता और आबरू,
लूट रही है देवियां और भेड़ियों से रू ब रू।
जय जवान जय किसान और लाल जी के कर्म को,
झूठलाने की साज़िशें चल रही है बूझो तो मर्म को।
बापू का ईश्वर अल्लाह तेरो नाम एक था
कलाम या अटल थे जाया तेरा बेटा था।
लौटा दो ना वह भारत जिसमें राधा प्यारी थी,
सदियों से पूजी जाने वाली सीता नारी थी।
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50
अहसास
मेरे फिक्र करने वाले
मेरे हालातों पर दया दिखाते है
अपना प्यार का पराकाष्ठा का पैमाना ,
मुझ से ही जतला कर नपवाते है।
खाते है क़सम जान भी देने की
ज़रूरत पड़ी तो पीठ दिखाते है।
प्यार की रंग में रंगने वाले गहरे रंग से ,
हलकी सी धूप के आंच में फीके पड़ जाते है।
अंधेरों को चीरता वह रोशनी
धुंधला सा मलीनता लिए है,
क्या दौर चला था हवाओं का
जब ख़ुश्बू आए अपना रुख बदलते है।
एक दीदार था जन्म भर से अहसास का
बिखरे सपनों का घरोंदा ही रह गए हैं ।
न कर मुराद ए बहार ‘ मित्रा ‘
धरा और आसमान ही रीत गए हैं ।
**
51
तू मेरा दोस्त
( भगवान )
रिश्ता है ख़ास तेरे साथ जैसा है वैसा ही,
तू मुझे अपनाता है मैं जैसी हूँ वैसे ही।
तेरी उंगली पकड़कर जैसा तू क़दम चलाता है ,
रंग में रंगता है तू अपना जादू चलाता है।
मन के परतें खोल खोल कर तेरे साथ मैं,
ज्वार फुटते हैं सरोवर में नहाती हूँ मैं।
यह अनोखा रिश्ता तेरी कैसी दोस्ती का ,
तू मेरा आसमान है , मैं धरा हूँ तेरी दोस्ती का।
तेरी दोस्ती के मेहंदी से रंग लूँ आज
कभी न मिटने वाला सिंदूर भर लूँ आज।
साँसों की तारों में बाँधा है तूने मुझे,
संगीत में लहराता है तू महकाता है मुझे।
अठखेलियाँ खेलता रहे तू मेरी क़िस्मत से,
भरोसा है तुझ पर रखता है तू अपनी रहमत से।
**
52
चाँद
मन में व्याप रहा तिमिर
बिछुए, कंगन सिसके रात भर ।
वह सात फेरों की क़सम भूलकर चले अपने पृथक पथ पर।
बाट जोहते -जोहते
वेदना बढ़ा रहा विरह
अश्रु अविरल बहते रहते
न खुलती अंतर्मन की गिरह ।
मन में जला है दीप आशा का
उम्मीदों की तरंग है
शशि तुम्हारी किरणें
मन के लिए ओस की बूंद है
इस मलीनता को मिटा दे
जीवन उल्लास से अच्छादित कर दे
हे चाँद ! उपहार दे चकोर को
चादर ख़ुशियों की ओढ़ा दे।
**
53
हे चाँद !
हे चाँद ! अगर तुम पास होते
छुकर तुम्हे मन नाच उठता ।
केश की ओट में छुपा लेती
तन चाँददनी से दमक उठता
लेकिन तुम हो बहुत दूर
मेरे पिया की तरह ।
मै विरहिणी तरस रही
यहां किसी चकोर की तरह।
पिया मिलन की आस में
पलक बिछाए बैठी हूँ ।
मन में आशा के दीप जलाए बैठी हूँ ।
हे चाँद ! आज मागती तुम से पिया का उपहार दो न
जीवन को उल्लास से भर दो न
ख़ुशी की ज्योत्सना मेरे आंगन में भी फैला दो न।
तरस रहा जो मन, उस मन को अब तो मिलन का वरदान दो न ।
हे चाँद ! अब ...........
**
54
मेरा वजूद
मेरा होना किसी को भाता नहीं
सभ्य समाज में,
मैं समाता नहीं ।
जन्म से धिक्कार,
कोई अपनाता नहीं
सभ्य समाज से मेरा कोई नाता नहीं ।
सिर्फ हँसी के लिए बना हूँ
दर्द पीने के लिए बना हूँ
तालियाँ मेरे नसीब में नहीं
ताली बजाने के लिए बना हूँ ।
पेट भरने के लिए
मेरी झोली फैली रहती
सबकी मुरादें मेरी झोली में
सिक्कों संग गिरती रहती
अपने तन से नफ़रत कैसे करूँ
बस, ख़ुद मन ही मन धीर धरूँ
आँसू को मुस्कान के पीछे धरूँ
उसने भेजा धरती पर, क़ुबूल करूँ ।
तन अधूरा मन अधूरा
, ना कुछ मुझमें भी पूरा
लेकिन स्त्री का श्रृंगार कर,
करूँ कुछ मन का पूरा ।
कोई नहीं दे सकता मुझे जो
रह गया मुझमें अधूरा
विनती यही कि दुआ लेते रहना,
हो ख़्वाब तुम्हारा पूरा ।
**
55
कुछ कहना है
दीप !
तुम रोशन करो
उन घरों को
जहाँ बाती बनाने को
रुई भी न हो ,
तेल खरीदने को पैसे न हो
तुम्हे जलाने को दिये न हो।
तुम वहां दैदीप्यमान रहो,
जहाँ तमस हो
अंधियारा हो
अज्ञानता का वास हो।
बढ़ा दो ज्योति की लौ
मन का उजियारा
शिक्षा मिले बेटियों को
चमके चमन ।
बदल दो दुनिया को तुम
जो आपसी रंजिश में
मानवीय मूल्य की
आपसी भाईचारे की
भूल रहा इंसान दंभ में।
तुम सुगन्ध फैला दो
सामंजस्य की
नैतिक मूल्य की
प्यार भावना की
परोपकार की।
ऐसे आ दीवाली !
जहाँ राधा और सलमा
ख़ुशियों के मिठाई बांटे
आफ़ताब और सूरज
देश के लिए मर मिटे।
**
56
अलविदा
तुम्हारे आने की ख़ुशी में राहों पर फूल बिछाए थे
तुम्हारा स्वागत के लिए हमने अपने नयन झुकाए थे।
तुम्हारे आने के पहले हमने गीत गाए थे,
झूमें , नाचे और कई सपने जगाए थे।
तुम आए मगर कुछ ही दिन की ख़ुशहाली लेकर
फैल गया एक अँधेरा , चारों ओर बदहाली लेकर
हम कभी न भूल पाएँगे इस सौगात को
भयावह सन्नाटे को,
हर जगियारी रात को ।
फैल गए दर्द अजीब, छूटा अपनों का साथ
किसी का छूटा घर , न बढ़ा पाया कोई हाथ ।
कई घर थे वीराने,
कर रहे थे इन्तिज़ार
भीगी- भीगी आँखे, मन देहरी के पार ।
रोटी कमाने गया बेटा, न हो जाए बीमार
घर आ जाए कैसे भी, प्रार्थना यही हर बार ।
कई अनहोनी भी हो गईं , उम्मीदें टूट गईं
पथरीली हो गईं आँखे और बहारें रूठ गईं ।
मज़दूरों के पैरों की छीलन, तुमने भी देखी होगी
रोटी के बदले मिला जो दुःख उसकी नमी देखी होगी।
वह क़ाफ़िला जो जा रहा था लंबे सफ़र पर
वह कोलाहल, वह चित्कार, बिछोह का प्रहर ।
क्या तुम
उन मुरझाए चेहरों पर, फिर से मुस्कान दे सकते हो?
हृदय में जो ज्वाला दहक रही है,
तुम बुझा सकते हो?
नहीं , तुम हमारे घावों को नहीं भर सकते
तुम्हें तो जाना है,
तुम अब रुक नहीं सकते ।
फिर भी
तुम्हें याद रखेंगे, तुमने कई बातें हमें सिखाई हैं
जीवन से लड़ने की नई तैयारी हमें सिखाई हैं
अलविदा तुम्हें !
लेकिन जाते - जाते एक काम ज़रूर हमारा करना
अपने मित्र -वर्ष के कानों में बहारें भरने का कहना ।।
**
57
तुम्हे क्या लिखूँ
तुम्हे क्या लिखूँ , विरह के गीत लिखूँ
ज़िंदगी में मिले ज़ख़्मों के टीस लिखूँ ?
वह पहली मुलाक़ात के जज़्बात लिखूँ
या आँखें चार होने की दास्तान लिखूँ ?
दिल का तार जुड़ने की कहानी लिखूँ
या तुम्हारी दी हुई प्यार की निशानी लिखूँ ?
थोड़ा सा आसमान अपना चाहा था
या ज़मीन भी छीन जाने का उपहास लिखूँ ?
बेरुख़ी से सींचकर पला हुआ फूल
कि एक नज़र रहम की ख़्वाहिश लिखूँ ?
न भरेगा कभी समय के बदलाव से भी
खुरचन से निकले लहू का बहाव लिखूँ ?
**
58
किताब
तुम क्यों गुमसुम - सी हो,
अनकही दास्तां से भरी - सी हो।
भले अंधेरे में चमक देती हो ,
पर आजकल पलटती नहीं हो।
तुम ज्ञान की धारा हो ,
महकती कलियों का संसार हो।
सच तुम मेरी सहारा हो,
मुश्किलों में राह दिखाने की बहार हो।
तुम्हे खोलती हूँ गहरा जाती हूँ ,
समुंदर में जैसे गोता लगाती हूँ ।
बह जाती हूँ और डूब जाती हूँ ,
अपने अश्कों के बूंद टपकाती हूँ ।
ज्ञान दर्पण की मूल विरासत,
अक्षर मोती से सुसज्जित ।
जमाई हो पैठ सदियों से,
वेद , गीता के संदेशों से ।
**
59
अपना दर्द
तपती रेत में चलने की आदत सी हो गई
ज़िंदगी अनसुलझे सवालों से घिर गई।
हमने भी देखे थे ज़िंदगी के हसीन सपने
भावना और जज़्बात को समझेंगे हमारे अपने।
मगर क्या था कि कुदरत को और ही मंज़ूर था
नज़ारा दिखाना ही उसका दस्तूर था।
ज़िंदगी मिलती है यहाँ पनाह नहीं मिलती
हर किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता।
दर्द के सैलाबों पे आंसुओ को पीते हैं
छलनी सा है दिल निश्तरों को चुभने से फिर भी जीते हैं।
**
60
सखी
हे सखी ! तुम
मुस्कुरा रही हो
उमंग में नाच रही हो
भोर संग गा रही हो
पंछियों संग चहक रही हो।
हे सखी !बताओ ना!
तुम्हारा मन मंदिर में
राज करने वाला कौन है
चित्त चुराने वाला है कौन है ?
वही है ना ?
जिसे मैं भी जानती हूँ।
उसी कान्हा से तो
तुम्हारी आँखे चार हुई थीं
और तुम लाज से लाल हुई थी।
उस दिन पनघट पर
हम सबके प्यारे कान्हा को
तुमने कैसे तिरछी नज़र से देखा था।
तुम्हारी
गगरी से पानी छलक रहा था।
तुम्हारा प्यार कान्हा की ओर
बह रहा था।
हे सखी ! उधर कान्हा की
बांसुरी बज रही थी।
और इधर तुम
हर्ष के अश्रु लिए
देह से परे प्रेम में
बह रही थी।
सुन सखी !
प्रेम तो प्रकृति है
यह कोई व्यवहार नही!
कि तुम करो तो कान्हा भी करे
तू भी प्रेम कर,
हम सब भी प्रेम करें,
कान्हा और प्रेम!
दो ख़ूबसूरत अहसास
मानो, पूरक हों एक-दूजे के
खिल उठता है मन
देख मुख कान्हा का।
जैसे छू लिया
जब तितली के
कोमल पंखों को,
अंगुलियां पर लगा पीला रंग
मानो बिखेर गया हो
छटा प्रकृति की
हथेलियों पर।
कान्हा का प्रेम भी
जब छू लेता है,
तन को नहीं,
सिर्फ आत्मा को ही।
मानो सारे इंद्रधनुषी
रंग फैल गए हों
ज़िंदगी में।
तन-मन दोनों को ही
आनंदित कर देता हैं
कान्हा और प्रेम
देर है तो सिर्फ
महसूस करने की।
**
61
आस्था
कोई दर्द समझ न पाया मुस्कुराने की आदत से,
हम लिखते रहे बेज़ुबां दर्द काग़ज़ पे।
बेइंतहा प्यार है ख़ुदा तेरी ख़ुदाई से,
आहत ना कर,
दूर कर जुदाई से।
पवन अपनी दिशाएं बदलता रहेगा,
चल पड़ा है तूफ़ान तो सामना भी होता रहेगा।
इस रूहानी तलब को कैसे मिटाऊँ
जीवन का आधार है तू ,दिल मे ही तुझे छुपाऊँ।
नहीं भाता कुछ और तेरे सिवा,
दस्तूर बन गया है कि सिर्फ तुझे ही याद करूँ।
ख़ामोश रहूँ तेरे साथ ओ हमदम,
तुझ में ही मेरी सबकुछ बात पूरी करूँ।
होठों से ज़िक्र न करूँ पर अश्कों से पुकारूँ,
लाख छुपा लूँ मोहब्बत पर,
हर स्याही तेरे नाम करूँ।
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62
रस
भक्ति का रस जिसने पी लिया
वह पार हो जाता है
जिसने ईश्वर से रिश्ता जोड़ लिया
वह उसका आधार हो जाता है।
जिसके मन में दया अपार हो
वो पार हो जाता है,
जिसने परोपकार की राह चुन ली वह पार हो जाता है।
जिसके दुःख में तेरे आँसू आएँ
समझ ले बंदे तू तर गया
औरों के सुख में तू मुस्कुराए
समझ ले तू तर गया।
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63
बिटिया
जब तुम आई थी मेरा अंश बनकर,
तुम्हें देखने को बहुत आतुर थी मैं।
संसार की ख़ुशी मिल गई थी, तुम्हें देखकर ख़ुशी से रोई थी मैं।
जब तुम धीरे-धीरे तुतलाने लगी,
तब बोलने से पहले मैं समझ जाती।
तुम हँसती मैं हँसती, तुम रोती मै रोती
तुम्हारे इशारे में मैं भी ख़ूब नाचती।
तुम चलने लगी ता ता थैया पांव से,
लगता दुनिया नाप लोगी क़दम ताल से।
जब तुम पाठशाला गई पहली बार,
तब ऐसा हुआ मुझे पहला अहसास।
जैसे जिगर का हिस्सा नहीं है मेरे पास,
आँसू फूट पड़े थे और फूट पड़े जज़्बात ।
बेटी ही नहीं ह्रदय का टुकड़ा हो तुम
पापा की परी और उनकी शहज़ादी हो तुम।
जिगर के टुकडे को अलग करने में
हुई तो है कुछ तकलीफें तुम्हें भेजने में।
सारा घर सुना है तुम्हारे जाने के बाद,
सुनाई नहीं देती तुम्हारे क़दमों की आहट।
ना घबराना तुम कभी अकेले मायूस होकर,
अंधेरे के बाद ही दिन निकलता है जाकर।
मंज़ूर नहीं था मुझे तुम्हारे किनारे पर बैठना
डूबने की डर से तुम्हारे हाथ में कुछ ना आना ।
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64
टीस
अमर सुहाग की पैग़ाम देने वाले
मेरे चांद को मेरा होने क्यों नहीं दिया,
हाथों में चूड़ियां खनकती रही पर
उस रस को घुलने क्यों नहीं दिया?
महावर की लाल सुर्ख़ रंग को
इस तरह क्यों बेरंग कर दिया,
मांग भरी सिंदूर,
माथे की बिंदिया को
उनको आज क्यों उदास कर दिया?
हूक सी उठती है मन में बहुत
जब छनकती है पायल छन- छन
हर्षित नहीं है मन का कोना
सहन नहीं होता दूरी रोता है मन।
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65
देख माँ
अमिट कहानी लिख डाली है बेटों ने,
तेरी लाज बचाने क़दम बढ़ाए है बेटों ने।
सोंधी ख़ुश्बू तेरी माटी की महक गई ,
तेरे रक्षा के लिए जान भी क़ुर्बान गई।
मनाते है हम दीवाली घरों में बैठकर,
वो खेलते है होली सरहदों पर जाकर।
जब दुश्मन अपनी पंख फड़फड़ाते है ,
तब वीरों ने डटकर अपना लहू बहाते है ।
दांव - पेच खेलकर कायरों ने हराने को ,
शूरवीर हारते नहीं आँखें चार कराने को।
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66
नमन योद्धा
मातृ भूमि के वीर पुत्र !
आप के सम्मान में उठे हुए
मस्तक प्रणाम करते हैं,
गर्व से तनी हुई छाती और अवरुद्ध कंठ से भी
आप के गुणगान करते हैं।
आप का जाना साधारण नहीं था , साज़िशों की बू आती है,
गद्दारों के मन में पनपते रंजिशों के भास आती है।
योद्धा घर पर नहीं पर्यण करते वीर गति को पाते हैं ,
दुश्मनों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु अकेले ही लड़ते हैं।
नमन वीर सिपाही ! तुम्हे नमन !
भारत माँ महान बनाने वाले
आप को नमन।
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67
रश्मियाँ भोर की
सुबह की लाली धरा पर
उतर रही
बसंत की उमंग भर रही
रश्मियाँ भोर की।
पीले पीले सरसों के खेत
महक रहे
ओस की बूँद चमका रही रश्मियाँ भोर की।
पत्ता-पत्ता सौंदर्यमय हो रहा
उन्मुक्त हवा बह रही चारों ओर
फागुन के गीत गुनगुनाने लगी
रश्मियाँ भोर की।
गुदगुदाने लगी सताने लगे याद प्रियतम की
भ्रमर को बुलाने लगी रश्मियाँ भोर की ।
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68
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”
तू प्यार है, ऐतबार है...
तू इस जगत का आधार है
बिन तेरे जहान है सूना
और तन्हा नारी तू नारायणी
तू ही जग संसार है।
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69
ऐ मेरे सखा सुन
ऐ मेरे सखा सुन... ऐ मेरे सखा सुन,
सावन का झूला झूले संग में
मल्हार गाए मन।
पुरवइया के मस्त हवाएँ तन मन हर्षाए
इठलाती बूँदें वसुंधरा पर
घनघोर बरसाए
ऐ मेरे सखा सुन... ऐ मेरे सखा सुन
रंग उमंग मस्ती में तेरे
महका री मेरा तन।
कल कल बहती नदी की धारा
संगीत सुनाती
लताएँ झूमे हरियाली वन में दुल्हन सी शर्माती
ऐ मेरे सखा सुन... ऐ मेरे सखा सुन
सावन का झूला झूले री संग
मल्हार गाए मन।
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70
आज़ादी
आज़ादी के दीवाने ये अपने,
इनने दिलवाई हमको आज़ादी।
काँटों के पथ पर चल चल कर,
देश की ख़ातिर लाश बिछादी।
चुका सकें न क़र्ज़ कभी हम,
इनके अनगिन अहसानों का।
आज चैन की नींद हम सोयें,
उपकार है यह इन परवानों का।।
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71
आया सावन झूमकर
रिमझिम रिमझिम बरस रही है ,
बादल का अहसान लिए।
आया सावन झूम झूम के,
होठों पर मुस्कान लिये।
मोर ,पपीहा,कोयल काली
अब लगते प्रेम दिवाने,
अपनी धुन में झूम झूमकर ,
सब गाते प्रेम तराने।
घर -घर ख़ुशियाँ कूक रही हैं,
पीहू जैसी शान लिए,
आया सावन झूम झूम के
होठों पर मुस्कान लिये।
मद्धिम झरती बूँदों से ही
लगता सावन प्यारा है,
बिजली कडके बादल गरजे,
अद्भुत खूब नज़ारा है।
घनघोर घटाऐं नाच रहीं ,
अपने ही स्वर तान लिये
आया सावन झूम झूम के
होठों पर मुस्कान लिये।
ये मन मेरा बैरी जैसा ,
चोट करे दिल पर मेरे।
दूर पिया के जाने से अब ,
हुए दुख के घन घनेरे।
पिया का भी संदेसा आया ,
अपनी ही पहचान लिए।
आया सावन झूम झूम के,
होठों पर मुस्कान लिये।
धूप घनेरा दूर हुआ अब ,
मन मोहक मेघा छाये।
बारिश की बूँदों के जैसी,
ख़ुशियाँ लेकर ये आये।
श्यामल -श्यामल बहते बादल,
गर्मी का अवसान लिये।
आया सावन झूम झूम के
होठों पर मुस्कान लिये।
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72
बोल दो !
प्रेम तो मुझे मिल चुका है
बहुत पहले ही तुम्हारा
पर कुछ तो है जो अनकहा है
कुछ तो है जो छिपा रखा है।
करती हूँ मनुहार अब तो खोल दो
गिरह मन की।
कह दो अब बात दिल की
बोल दो कुछ बोल दो
प्रिय मेरे, कुछ बोल दो।
खोए- खोए से हो तुम
तुम्हारी आँखों से झलकता है।
गुमसुम से हो,
गुपचुप से हो
कुछ तो तुम्हारे मन में है।
जो बाहर निकलने को मचलता है।
करती हूँ मनुहार तुमसे
बोल दो,
कुछ बोल दो
अपनी
मन की गिरह को खोल दो।
छोड़ो, अगर मजबूर हो तो
नहीं कह सकते तो रहने दो।
तुम्हारे मौन को पढ़ लूँगी।
धीरे-धीरे उतरूँगी भीतर
अनकहे भावों को भी
पढ़ लूँगी।
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73
मनमीत
ज़िंदगी के लिए जीने की
सिर्फ शिद्दत काफ़ी नहीं,
जीने की कोई ख़ूबसूरत
वजह मिले तो बात बनें!
यूँ तो मिल जाते हैं राहों में
हमनवां, हमदम,
अक्सर,
कोई मिले ज़िंदगी का हमसफ़र,
तब तो कोई बात बनें!
मृदुल स्वप्न भौंर मनोहर
प्रिय हमदम तेरा संग
मैं राधा तुम मेरे मोहन
रगों में चढ़ा है तेरा रंग।
सपनों के घरौंदे आशाओं के दीप
आँचल में बाँधे तेरा प्यार।
नयनों में तेरी छबि पाले
झंकृत मन के तार।
प्यार के आँचल में बाँधा है
तुमको हे मनमीत।
तुमसे ही मेरा जीवन है
तुम हो मेरे गीत।
**
74
मेरी माँ
मेरी माँ, तुम
आशा को विस्तृत करती
दिव्यदृष्टि से पूरित करती
कदमों को प्रगति ओर मोड़ती।
सकारात्मक भावों का संचार हो तुम
मेरे स्वप्नों का अभिसार हो तुम।
मेरे पथ के कंटक चुनती
घनी धूप में छाया करती
ममता, वात्सल्य का सार हो
माँ तुम मेरे स्वप्नों का अभिसार हो।
साँसों में मेरी बसती हो
अश्रु नयन के पोंछती हो
करुणा का भण्डार हो
माँ तुम मेरे स्वप्नों का अभिसार हो।
मानवता का पाठ पढ़ाती
समभाव मन में बिठाती
सब धर्मों का आधार हो
माँ! तुम मेरे स्वप्नों का अभिसार हो।
गीले में खुद सो जाती
सूखे बिस्तर हमें सुलाती
कुदरत का अनोखा उपहार हो
माँ, तुम मेरे स्वप्नों का अभिसार हो।
चंदन सी पावन दिल की
पूजा घर सी हो महकती
प्रेम की निश्छल फुहार हो
माँ! तुम मेरे स्वप्नों का अभिसार हो
**
75
माँ का आँचल
पहली धड़कन की वो लड़ी
धडकी थी तेरे भीतर ही।
किसी आसमां को छोड़कर
गोद मैं आई थी किसी घड़ी।
आँखे खुली जब पहली दफा,
तेरे आँचल से लिपटना देखा।
हर लम्हा तेरे साथ जिया
कैसे जीना है तुझसे ही सीखा।
संसार की तपती धूप में
तरूवर की ठंडी छाँव तू ही।
जीवन के हर सन्नाटे में,
लोरी की मधुमय तान तू ही।
माँ, तेरे बिना तो
रहता सब सूना सूना है।
दुनिया के सब सुख से बढ़कर,
तेरे आँचल का कोना है।
माँ, तेरा होना इस धरती पर,
स्वर्ग का नरम बिछौना है।
दुनिया के सब सुख से बढ़कर,
माँ तेरे आँचल का कोना है।
**
76
महानायक
गीत बनो तुम हर लब का
दीप बनो तुम हर शब का
धड़कन तुम लाखो दिल की
रौनक तुम हर महफ़िल की
सदी के महानायक हो तुम
भारत के जननायक हो तुम
मृत्यु की धुन पर जीवन गीत
गाना कोई तुमसे सीखे
अब अंगारों पे नंगे पाँव
चलना कोई तुमसे सीखे
इस सदी के महानायक हो तुम
इस विश्व के जननायक
हो तुम
**
77
हाइकु
अब गौरैया
तुम्हारी चुलबुल
हो गई गुल।
आती नहीं हो
तुम गाती नहीं हो
कहाँ गुम हो।
लौट आओ न
सुना आँगन मेरा
लगा दो फेरा।
कभी फुरती
कभी फुदकती हो
चहकती हो।
आ जाओ रानी
फूलों के डालियों में
औ कलियों में।
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कवियत्री - मित्रा शर्मा
साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन - कविता , गीत , हाइकु , भजन , संस्मरण , लघुकथा , लेख आदि।
विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट का सम्मान।
साहित्य समूह ' विचार परवाह ' और ' कथा दर्पण ' में सक्रीय रूप से जुड़ कर अनेक प्रतियोगिताओं में सक्रिय भागीदारी।
साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
कई साहित्यिक और सामजिक संस्थाओं में सक्रीय भागीदारी।
अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
संपर्क - 7869176730
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