Sunday, January 19, 2025

शहर और जंगल - तो कोई क्या करे ?

 तो कोई क्या करे ?


आज़ादी कोई ढोल नहीं 

जिसे आज़ादी से बजाते रहे 

सड़कों पर गाते रहे , चिल्लाते रहे 

व्यापारी जब चाहता है , भाव बढ़ा देता है 

ताकत जब चाहती है , छीन लेती है ...

संस्कृति के सब आदर्श 

सब मूल्य खोकर भी 

मस्त रहना और यह  कहना 

हम आज़ाद हैं

शायद इसी का नाम आज़ादी है 

न जाने क्यूँ

किस पर शासन किये बिना 

हमे लगता ही नहीं , हम आज़ाद हैं 

दस्तक 

आज भी दे रहा है द्वार पर प्रकाश 

पर , हम फिर भी 

अंधेरों में सिमटे रहें 

तो कोई क्या करे 

सूरज आज भी प्रकाशवान है 

हम फिर भी परदे न उठायें   

तो कोई क्या करे  ?

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