तो कोई क्या करे ?
आज़ादी कोई ढोल नहीं
जिसे आज़ादी से बजाते रहे
सड़कों पर गाते रहे , चिल्लाते रहे
व्यापारी जब चाहता है , भाव बढ़ा देता है
ताकत जब चाहती है , छीन लेती है ...
संस्कृति के सब आदर्श
सब मूल्य खोकर भी
मस्त रहना और यह कहना
हम आज़ाद हैं
शायद इसी का नाम आज़ादी है
न जाने क्यूँ
किस पर शासन किये बिना
हमे लगता ही नहीं , हम आज़ाद हैं
दस्तक
आज भी दे रहा है द्वार पर प्रकाश
पर , हम फिर भी
अंधेरों में सिमटे रहें
तो कोई क्या करे
सूरज आज भी प्रकाशवान है
हम फिर भी परदे न उठायें
तो कोई क्या करे ?
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