कविता की हत्या
एक कविता
कल मर गयी
- बीमार थी ?
- नहीं !
- आत्महत्या ?
- नहीं
-फिर ?
-क़त्ल , ख़ून , हत्या !
- कविता की हत्या ?
हाँ ,
आजकल इस देश में
कविता की हत्या
एक आम बात है
राजनीति की घात है
- कैसी थी ?
युवा थी , सुन्दर थी , सच्ची थी
इठलाती फिरती थी
गाँव की पगडण्डी पर
करती थी नृत्य
बादलों के संगीत पर,
खाती थी बल हर लहर पर
धड़कती थी हृदय की प्रीत पर
मज़दूर का पसीना थी
ताज का नगीना थी
सिपाही की हिम्मत थी
पर फूटी इसकी क़िस्मत थी
गाँव की वह सूनी
पगडण्डी जब से छोड़ी
रीत गया संगीत
चिमनियों से उठते धुँए ने
घोंट दिया उसका दम
बमों ने , पटाखों ने
बना दिया उसको बहरा
और
शहर की जगमगाती रौशनी ने
चील ली उसकी बीनाई
सत्य की , प्रीत की , सौंदर्य की
मूक हुई शहनाई
कविता गयी मर
मर कर हुई अमर
पर कोई सरकार , कोई ताकत
बना न पाई उसको गूंगा
कविता आज भी मुखर है
हर स्नेहिल ह्रदय का स्वर है।
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