Thursday, January 23, 2025

शहर और जंगल - रिक्तता

 रिक्तता 


तुम मुझे छू कर 

मुझसे कुछ लोगे  नहीं 

अपितु कुछ दोगे मुझे 

मेरा तुम्हे छूना 

होगा मात्र एक समर्पण 

एक आहुति ,

अगर तुम मुझे 

छू नहीं सकते 

तो केवल रिक्त रहना 

मत प्रवाहित होना 

किसी शून्य में 

क्योंकि शून्य , शून्य होता है 

संभव नहीं है 

शून्य में शून्य की रचना 

इसलिए 

तुम रिक्त ही रहना 

अभी रचना है 

मुझे एक महाकाव्य 

तुम्हारी रिक्तता पर 

मैं समझता हूँ 

तुम मुझे छू नहीं सकते 

लेकिन 

मैं तो ख़ुश्बू हूँ 

मुझे तो छूना है 

आकाश को , धरती को 

सागर की लहरों को 

यौवन के पहरों को 

मैं नहीं सहेज सकता 

इतना सब कुछ 

अपने भीतर 

मुझे तो छूना है 

आदमी को 

जीवन को 

मृत्यु को।  

No comments:

Post a Comment