सूरजमुखी
बहुत अरसे से
मेरे आँगन में धूप नहीं उतरी
कहीं ऐसा तो नहीं
कोई सूरज को क़ैद कर बैठा हो
छोटी सड़क पर लम्बी दौड़
हर पिछ्ला हाथ
तोड़ देना चाहता हैं अगली टाँग
मकानों की खिड़कियाँ बंद
बारूद की गंध
उस अग्निकुंड से कभी कभी
आती तो हैं धूप मेरे आँगन में
लेकिन तभी लौट जाती है
और मेरे आँगन के
सूरजमुखी की गर्दन
झूल जाती हैं
जल्लाद सूरज के हाथों में ।
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