सितम्बर के अंत में
चाँदी का पहला तार चमकती धुप में तैर रहा था। पारदर्शिता से आकाश सुन्दरतम और उदासीनता में ऐसे दमक रहा था जैसे कि धीरे धीरे मरते हुए पवित्र होंठों पर आखिरी मुस्कुराहट। गूंगा दुःख बाग़ के ऊपर झूल रहा था , बड़े पेड़ों के ज़र्द पत्तें टूटने के दुःख में विलाप करते हुए काँप रहे थे। दिल का अलविदा चुम्बन अब आँगन में तप रहा था। सितम्बर का ख़ूबसूरत ग़म पतझड़ के साथ विवाह रच रहा था ; हाँ यह सच में शुरू हो गया था।
धीमी आग बाग़ में विलाप कर रही थी , हर तरफ बिछड़ने का ग़म था। पतझड़ आ गया था , हाँ पतझड़ आ गया था।
लड़की ख़ामोशी से आरामकुर्सी में धँसी झूल रही थी। उसके लम्बे खुले केश उसके लाल होंठो पे लहरा रहे थे , शर्म से लाल चेहरे का घूँघट बन गए थे।
लड़की इतनी सुन्दर थी , उसे पतझड़ चाहिए था , उसे विदाई और उदासीनता चाहिए थी।
लड़की इतनी सुन्दर थी।
जवान लड़का उसके नजदीक बैठ गया था। उनकी मुलाक़ात नज़रों - नज़रों में हो गयी थी। उनकी नज़रों में गोधूलि रौशनी पसर गयी थी। उदास मुस्कुराहट और गोधूलि बेला से अलविदा।
रात की हवा ने गुलाब की पत्तियाँ उनके आगे बिखेर दी थी। एक पत्ती लड़के के ऊपर गिर गयी थी, वह धीरे धीरे उस पत्ती के टुकड़े करने लगा।
लड़की ने ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा ," अब आप चले जाइए। आप अलविदा कहने आये थे। और हाँ ! मुझे भूल जाओगे ना ? क्या कभी कभी मेरी याद आएगी ? मैं हमेशा तुम से प्रेम करती रहूँगी और रोती रहूँगी। "
- " माग्दा , ऐसी बाते मत करो। मैं तुम से प्रेम करता हूँ। मैंने अपना दिल गहरे दफ़्ना दिया था। नियति की यही इच्छा थी। हाँ अब मैं अलविदा कहता हूँ लेकिन हमारा प्रेम , हमारा विवाह , , हमारी ख़ुशी , हमारे चुम्बन , सब कुछ जो भी हम दोनों का है , रेशमी धागों में बँध करतुम्हारे पास रहेगा।
उन रेशमी धागों से क्या होगा , अगर प्रेम पहले ही मर चुका है , हमारा विवाह टूट गया है , हमारी खुशियों का अंत हो चुका है और हमारे पास अब और चुम्बन नहीं हैं।
देखो प्रिय ! मेरी आत्मा ने हर धागे के साथ तुम्हें बाँधे रक्खा । तुम्हारी यादों से मैंने ख़ुद को ढक लिया था , तुम्हारी यादों ने विरह के आंसूं भी पौंछ डाले थे। लेकिन अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। मेरा जीवन एक स्वप्न है। अब के बाद मैं यादों के सहारे रहूँगी , मरा हुआ प्रेम हर सुबह की हथेली पे रख दूँगी। टूटी हुई शादी के लिए रोऊँगी , बिखरते हुए चुंबनों के बिना मैं विधवा बन जाऊँगी। आप के लिए यह मात्र एक घटना थी , सुन्दर मुस्कुराती ख़ुशनुमां महाद्वीप जिसके लिए जीवन भटकता रहा था। हमारा प्रेम वसंत में जन्मा था , गर्मियों मैं इसने पेंगे बढ़ाई और अब पतझड़ है। देखो वो गुलाब कितना मुरझा गया है जो मैंने आप से उस सुन्दर दमकती गर्मियों की रात में पाया था।।
लड़की ने अपने सफ़ेद हाथों से अपना गुलाबी चेहरा साफ़ किया और ख़ामोशी से सिसकने लगी। लड़का शालीनता से उठ खड़ा हुआ , धीरे धीरे झूले की ओर बढ़ा ओर अचानक धीरे से लड़की की ओर झुका ओर उसका चुम्बन ले लिया। यह चुम्बन ऐसा था जैसे सितम्बर महीने में पेड़ की गुलाबी पत्ती। शाम हैरानी से बाग़ को देख रही थी ओर थकी हुई ख़ामोशी में सन्नाटा ही सन्नाटा था , कभी कभी पेड़ से पत्तियों के गिरने की आवाज़ ओर इक चुम्बन की आवाज़।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------
2
एक नयी औरत के बारे में
- मेरे अधरों ने एक निष्प्राण अधर का आखिरी चुम्बन लिया।
रात का समय था , हम सभी वहाँ थे , मृत व्यक्ति से न तो मैं भयभीत हूँ औऱ न ही उस से घृणा करती हूँ क्योंकि जो व्यक्ति सदा के लिए सो गया है वही सबसे अच्छा औऱ पवित्र है। फिर भी उस औरत का बड़ा औऱ गोल मटोल मुँह या यूँ कहिये कि जीवंत मुँह ज़िंदगी की ताज़ा आवाज़ मैं मुखर हो उठा था।
- जब तक जीवित था , मेरे पति से मेरे सम्बन्ध लगभग सपाट बने रहे। एक बार , सिर्फ एक बार वह भी मेरे क़रीब आ सकता था। क्यों नहीं आया ?
- मैं किसी के लिए भी दुखी नहीं हूँ। ज़िंदगी इक सलीका है कोई डरपोकपन नहीं। इसमें कुछ घृणा भी है। ऐसी कितनी ही औरते हैं जिनके पास कोई भी नहीं , कम से कम कुछ समय के लिए कोई भी नहीं।
- और मेरे पास जितनी सुन्दर अदाएँ शायद संसार मैं किसी के पास भी नहीं।
उसकी देह इतनी माँसल थी कि जवानी फूट फूट पड़ती थी। ठेठ गदराई और जीवंत लेकिन फिर भी गोल मटोल।
- देखो ज़रा , मुझे वो पसंद हो जो भरा पूरा हो।
- अब और नहीं...तब आना चाहिए था ।
- कब ?
मैंने अपने धूर्त मनोविज्ञान का सहारा लिया। अब उसके अधूरेपन को बदलना पुराने नीतिशास्त्र के मुताबिक़ कोई जुर्म नहीं।
उसने अपने बड़े शरीर अपने काले सर को सख्ती से सीधा किया और कहा -
मेरे अधरों ने एक मृत ठंडे आधार का चुम्बन लिया था। मेरे अधर बुखार से तप रहे थे , उसके कान में फुसफुसाया था : क्या तुम चाहते हो कि
मैं सब कुछ अच्छा करूँ , क्या तुम चाहते हो कि मैं कभी भी किस आदमी के मुख को न चूमूँ ? वह समझ गया और बोला , " हाँ , मैं चाहता हूँ
, क्या तुम मेरा आज्ञा मानोगी ? " हाँ , मैं मानूँगी , उसने मृतप्राय आवाज़ में कहा था। अब वह मेरा देखभाल नहीं कर सकता था , मेरी पिटाई नहीं कर सकता था और मैं उसकी आज्ञा का पालन कर सकती थी।
No comments:
Post a Comment