सितम्बर के अंत में 
चाँदी का पहला तार चमकती धुप में तैर रहा था।  पारदर्शिता से आकाश सुन्दरतम और उदासीनता में ऐसे दमक रहा था जैसे कि धीरे धीरे मरते हुए पवित्र होंठों पर आखिरी मुस्कुराहट। गूंगा दुःख बाग़ के ऊपर झूल रहा था , बड़े पेड़ों के ज़र्द पत्तें टूटने के दुःख में विलाप करते हुए काँप रहे थे। दिल का अलविदा चुम्बन अब आँगन में तप रहा था। सितम्बर का ख़ूबसूरत ग़म पतझड़ के साथ विवाह रच रहा था ; हाँ यह सच में शुरू हो गया था। 
धीमी आग बाग़ में विलाप कर रही थी , हर तरफ बिछड़ने का ग़म था।  पतझड़ आ गया था , हाँ पतझड़ आ गया था। 
लड़की ख़ामोशी से आरामकुर्सी में धँसी झूल रही थी। उसके लम्बे खुले केश उसके लाल होंठो पे लहरा रहे थे , शर्म से लाल चेहरे का घूँघट बन गए थे। 
लड़की इतनी  सुन्दर थी , उसे पतझड़ चाहिए था , उसे विदाई और उदासीनता चाहिए थी।    
लड़की इतनी सुन्दर थी। 
जवान लड़का उसके नजदीक बैठ गया था।  उनकी मुलाक़ात नज़रों - नज़रों में हो गयी थी। उनकी नज़रों में गोधूलि रौशनी पसर गयी थी। उदास मुस्कुराहट  और गोधूलि बेला से अलविदा। 
रात की हवा ने गुलाब की पत्तियाँ उनके आगे बिखेर दी थी।  एक पत्ती लड़के के ऊपर गिर गयी थी,  वह धीरे धीरे उस पत्ती के टुकड़े करने लगा। 
लड़की ने ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा ," अब आप चले जाइए।  आप अलविदा कहने आये थे।  और हाँ !  मुझे भूल जाओगे  ना ? क्या कभी कभी मेरी याद आएगी ? मैं हमेशा तुम से प्रेम करती रहूँगी  और रोती रहूँगी। "
- " माग्दा , ऐसी बाते मत करो।  मैं तुम से प्रेम करता हूँ।  मैंने अपना दिल गहरे दफ़्ना दिया था।  नियति की यही इच्छा थी।  हाँ अब मैं अलविदा कहता हूँ लेकिन हमारा प्रेम , हमारा विवाह , , हमारी ख़ुशी , हमारे चुम्बन , सब कुछ जो भी हम दोनों का है , रेशमी धागों में बँध करतुम्हारे पास रहेगा।   
 उन रेशमी धागों से क्या होगा , अगर प्रेम पहले ही मर चुका है , हमारा विवाह टूट गया है , हमारी खुशियों का अंत हो चुका है और हमारे पास अब और चुम्बन नहीं हैं।  
देखो प्रिय ! मेरी आत्मा ने हर धागे के साथ तुम्हें बाँधे रक्खा ।  तुम्हारी यादों से मैंने ख़ुद को ढक लिया था , तुम्हारी यादों ने विरह के आंसूं भी पौंछ डाले थे।  लेकिन अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। मेरा जीवन एक स्वप्न है। अब के बाद मैं यादों के सहारे रहूँगी , मरा हुआ प्रेम हर सुबह की हथेली पे रख दूँगी। टूटी हुई शादी के लिए रोऊँगी , बिखरते हुए चुंबनों के बिना मैं विधवा बन जाऊँगी।  आप के लिए यह मात्र एक घटना थी , सुन्दर मुस्कुराती ख़ुशनुमां महाद्वीप जिसके लिए जीवन भटकता रहा था। हमारा प्रेम वसंत में जन्मा था  , गर्मियों मैं इसने पेंगे बढ़ाई और अब पतझड़ है। देखो वो गुलाब कितना मुरझा गया है जो मैंने आप से उस सुन्दर दमकती गर्मियों की रात में पाया था।। 
लड़की ने अपने सफ़ेद हाथों से अपना गुलाबी चेहरा साफ़ किया और ख़ामोशी से सिसकने लगी। लड़का शालीनता से उठ खड़ा हुआ , धीरे धीरे झूले की ओर बढ़ा ओर अचानक धीरे से लड़की की ओर झुका ओर उसका चुम्बन ले लिया। यह चुम्बन ऐसा था जैसे सितम्बर महीने में पेड़ की गुलाबी पत्ती।  शाम हैरानी से बाग़ को देख रही थी ओर थकी हुई ख़ामोशी में सन्नाटा ही सन्नाटा था , कभी कभी पेड़ से पत्तियों के गिरने की आवाज़ ओर इक चुम्बन की आवाज़।     
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2
एक नयी औरत के बारे में
- मेरे अधरों ने एक निष्प्राण अधर का आखिरी चुम्बन लिया। 
रात का समय था , हम सभी वहाँ थे , मृत व्यक्ति से न तो मैं भयभीत हूँ औऱ न ही उस से घृणा करती हूँ क्योंकि जो व्यक्ति सदा के लिए सो गया है वही सबसे  अच्छा औऱ पवित्र है। फिर भी उस औरत का बड़ा औऱ गोल मटोल मुँह या यूँ कहिये कि   जीवंत मुँह ज़िंदगी की ताज़ा आवाज़ मैं मुखर हो उठा  था। 
- जब तक जीवित था , मेरे पति से मेरे सम्बन्ध लगभग सपाट बने रहे।  एक बार , सिर्फ एक बार वह भी मेरे क़रीब आ सकता था।  क्यों नहीं आया ?
- मैं किसी के लिए भी दुखी नहीं हूँ। ज़िंदगी इक सलीका है कोई डरपोकपन नहीं। इसमें कुछ घृणा भी है।  ऐसी कितनी ही औरते हैं जिनके पास कोई भी नहीं , कम से कम  कुछ समय के लिए कोई भी नहीं। 
- और मेरे पास जितनी सुन्दर अदाएँ शायद संसार मैं किसी के पास भी नहीं। 
उसकी देह इतनी माँसल थी  कि जवानी फूट फूट पड़ती थी।  ठेठ गदराई और जीवंत लेकिन फिर भी गोल मटोल। 
- देखो ज़रा , मुझे वो पसंद हो जो भरा पूरा हो। 
- अब और नहीं...तब आना चाहिए  था । 
- कब ?
मैंने अपने धूर्त मनोविज्ञान का सहारा लिया।  अब उसके अधूरेपन को बदलना पुराने नीतिशास्त्र के मुताबिक़ कोई जुर्म नहीं।  
उसने अपने बड़े शरीर अपने काले सर को सख्ती से सीधा किया और कहा - 
मेरे अधरों ने एक मृत ठंडे आधार का चुम्बन लिया था।  मेरे अधर बुखार से  तप रहे थे , उसके कान में फुसफुसाया  था : क्या तुम चाहते हो कि
मैं सब कुछ अच्छा करूँ , क्या तुम चाहते हो कि मैं कभी भी किस आदमी के मुख को न चूमूँ ? वह समझ गया और बोला , " हाँ , मैं चाहता हूँ 
, क्या तुम मेरा आज्ञा मानोगी ? " हाँ , मैं  मानूँगी , उसने मृतप्राय आवाज़ में कहा था।  अब वह मेरा देखभाल नहीं कर सकता था , मेरी पिटाई नहीं कर सकता था और मैं  उसकी  आज्ञा  का पालन कर सकती थी। 
लटका हुआ मुँह और बारिश की फुसफुसाहट इस तरह मेरे साथ थी जैसे कोई रेंगने वाला कीड़ा मेरे तपते सफ़ेद कंधे पर रेंग  रहा हो और मेरा कन्धा बर्फ सा सफ़ेद पड़ गया था। 
- गूंगो के मुताबिक  दीवानापन , द्दोसरों के अनुसार आत्मा से परिचय।  जीवन जीना ही असली काम नहीं है। चुम्बन करने चाहिए , चाय गिर पड़ी , रात गुज़र गयी , ज़िंदगी गम हो गयी......
अचानक मेरे गले में उसकी बाँहें थी लेकिन बस पल भर के लिए। पाँचवे  कमरे से एक रट हुए बच्चे की आवाज़ आई 
- ' माँ , माँ , क्या कर रही हो , इधर आओ। '
- माँ ने बेटे को ठंडी बाँहों में घुमाते हुए कहा था  - '  मेरे लाल , यह तुम्हारे पापा है , मैं इनसे शादी करुँगी।  पापा की तस्वीर देखना चाहोगे ?
उसने तस्वीर दिखाई थी।  बेसब्र लड़का जोकि अपनी माँ का कहना नहीं मान रहा था , एक छोटी सी टीशर्ट में बाहर दौड़ा और उसने उनको अँधेरे में ढूँढ लिया।  वह डरा हुआ नहीं  अपितु पिटा हुआ था। 
- " जाओ यहाँ से , बाहर निकलो ! "
- " तुम अपने चाचा को पसंद नहीं करते , मैं तुम्हारे लिए असली घोडा लाऊंगा। "
- " मुझे नहीं चाहिए घोडा , निकलो यहाँ से।  माँ सोने आ रही है , आओ माँ।  "
उनके बाच उसने अपना रास्ता बनाया। 
औरत ने कोशिश करी कि वह आज़ाद रहे और अपने माता - पिता की देखभाल करे।  इसलिए उसने लड़के को बलपूर्वक बाहर भेजा और फिर उसको अंदर ले आई , जिसका चेहरा बिलकुल उसके पापा जैसा था , उसकी गहरी और संदेहास्पद आँखें प्रेमाकत जलन से अँधेरे मैं चमक रह थी। उसको बर्दाश्त करना संभव नहीं था , माँ के जलते हुए चेहरे के पीछे छुप गया और उसने पुचकारते हुए कहा -" प्यारी माँ , अच्छी माँ  , मेरी परी माँ। " लेकिन फिर भी वो बच्चा था , लोरी , उपहार और पुचकार के साथ उसे सुला दिया गया और हमारी गुफ़्तगू  ज़ारी रही। 
उसका बाप मेरे साथ बच्चे की देखभाल भी करता था।  वह एक अच्छी आत्मा वाला इंसान था। बेटा दिन भर मेरी स्कर्ट का किनारा पकडे रहता और रात को उसके साथ ही सोना पड़ता। हर जगह मेरे साथ साथ रहता। पुरानी बात है एक बार गार्दे डेमल में प्रार्थना करने के लिए गए तो चार घंटों के लिए मुझे छोड़ दिया ...जाइये , वैसे भी जागना और एक बार फिर से वही होगा। 
वैसा ही हुआ।  दो - तीन बार नींद में डर कर उठ बैठा  और हमारी ओर भागा।  
- ' माँ , अंदर आओ ! '
- ' सब बेकार है।  औरत ने कहा ,' मेरे होंठ मृत के होंठों से चिपके हुए हैं ओर मैं उसके पास लेती हुई हूँ। यहाँ पर सिर्फ इसलिए हूँ कि मुझे बच्चे का लालन - पोषण करना है - मेरे होंठों को छू कर देखो , कितने तप रहे हैं , चुम्बन का अंत हो गया , सब कुछ ख़त्म हो गया। 
बच्चा फिर से आया और उसकी माँ उसके साथ सोने चली गयी।  सुबह हो गयी थी और मैं वहाँ दीवान पर लेटा अपने  आप को   धिक्कार रहा था , दरवाज़े के खुल जाने तक। और उसके बाद मैं वहाँ से चल पड़ा था बिना स्वप्न के , प्रेम से रीति रात को छोड़ कर , ठण्ड में काँपते हुए उस नयी औरत के चेहरे को याद करते हुए जिसके अधर हर किसी के ताज़ा अधरों को दरकिनार कर अपने मृत पति के अधरों पर चिपके थे। 
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3
चार चुम्बन 
दरागुश  इमरे के दिमाग़ में अचानक यह विचार कौंध गया कि कुछ दिनों बाद क्रिसमिस है। वकालत के उस नए कमरे में जहाँ सबसे आख़िर में 
फर्नीचर रखा था और  इमरे एक दूसरे  के ऊपर लटके उस कलेण्डर को घूर रहा था जोकि अभी तक व्यापारी काग़ज़ातों के धुएं से अभी तक काला नहीं पड़ा था। यांका के साथ वह एक हफ़्ते तक मिल नहीं सकता था और क्रिसमिस का त्यौहार भी वे इकठ्ठा नहीं मना सकते थे। उनका झगड़ा तीन महीने से चल रहा था। वकालत की प्रारम्भिक प्रैक्टिस के बाद एक दूसरे को कम पहचानते थे।  उन्हें इस तरह अलग कर दिया  गया था
जैसे कि तूफ़ान में सरकंडे के दो टुकड़े हो जाते हैं।  और यांका अब क्रिसमिस की तैयारी में लगी थी ; दो बच्चों के लिए उपहार , पांच साल का लड़का और तीन साल की लड़की , पति के लिए कुछ ख़ास ,उसके बाद क्रिसमिस पेड़ की सजावट , बड़ा परिवारिक प्रीती भोज ..
कम से कम फोन करना चाहिए था।  कुछ दिन गुज़र गए और फोन नहीं आया।  औरतों की समझ भी कितनी अजीब है। परिवार को त्यौहार के दिन के न्योते मिल गए थे कि सिल्वेस्टर के हफ़्ते में उससे भी अधिक आग जलेगी दोबारा से।  
वह शाम को क्या करें ? उसे किसी ने भी नहीं बुलाया था।  इस समय सभी परिवार अपने स्वार्थ में लिपटे रहते हैं। 
लेटने के लिए घर चला जाऊँ ? मैं नुक्कड़ के कॉफी हाउस में जा कर पसर गया।  
नमस्कार इमरे ! , एक युवा साथी वकील मेज़ के सामने खड़ा था। 
- " नमस्ते पीटर , आओ , बैठो ! " 
- " देख ही रहे हो , भारी कोट पहन रखा है ,अभी चलता हूँ।  पीटर ने कहा और बैठ गया ," उस प्लाट का क्या हुआ ? "
- " उसके साथ क़ानूनी समझौता करना पड़ेगा। "
- " शाम को क्या कर रहे हो ? तीन जगह से निमंत्रण होगा पहले ही ? " 
- " मैं कही भी नहीं जा रहा हूँ। " 
- " अगर तुम्हें कोई काम न हो तो इधर ही देखना , हम बेला के साथ एहि मिलेंगें। "
- " शायद नहीं , मेरे सर में दर्द है।  संभवतः आराम करूँगा। 
पीटर खड़ा हो गया और चल पड़ा लेकिन कुछ क़दम बढ़ाते ही पीछे मुड़ा , " यहाँ पर एक केस आएगा , हम दोनों मिलकर कर सकते हैं , पैतृक 
संपत्ति कि जटिलता , चलो जल्दी मिलता हूँ , अभी देर हो रही है। 
पीटर  निराशा से चला गया , उसने आराम से वो केस रख दिया , जिसके बारे मैं उसे मालूम था कि  सिर्फ इमरे कि मदद से ही उस केस को जीता जा सकता है। अगर इमरे को इनाम मिले तो शाम को इधर आएगा या फिर कुछ दिनों मैं आएगा।  
इमरे ने पूरे दिन काम किया।  दोपहर के बाद उठ खड़ा हुआ और वारसी सड़क जा पहुँचा , उसने अपने लिए सफ़ेद पाउडर और एक छोटा क्रिसमिस का पेड़ खरीदा , एक फ़्रांसिसी वाइन की बोतल , पाँच मोमबत्ती रखने वाला शमादान , एक इजिप्टियन भी एकत्रित किया , गहरी सांस लेकर एक वाइन का पैग पिया लेकिन उससे उसकी कंपकंपी छूटी जोकि मोमबत्ती की रौशनी में भी झलक पड़ी।  एक बार उसको ऐसा लगा कि उसकी नज़र उसे धोखा दे रही है और दुःख रही है , उसकी सिगरेट जल रही थी।  
अगर और एक क्षण भी इधर बैठा तो वह रो पड़ेगा , वह खड़ा हो गया।  अपने आस - पास देखा।  उसको पीटर की याद आयी।  वह सिर्फ कुछ ढूँढ रहा था  कि वहां जा सके। - रात के खाने के बारे में तो भूल ही गया। ' वह अपने आप पर ही हँस पड़ा था और उस पार दिखने वाले काम पर , आधे घंटे बाद कॉफी हाउस पहुँच गया था।    
चमकते - दमकते उस कमरे में ५०० की जगह सिर्फ पाँच आदमी बैठे थे। एक बड़ा पत्रकार , जिसको कभी किसी ने बड़े जैसे में नहीं देखा , पुराने फैशन के बाल सँवारे और आजकल का चश्मा लगाए , और एक - दो भावुक पियक्कड़ , हाँ शांत कॉफी हाउस के साथ और आखिर में दो सिगरेट पीते हुए दिखे जिन्हें देर से निमंत्रण मिला था , मुफ्त की मदिरा लेकिन प्रकाशकों ने उन्हें कोलबास और चीज़ दिलवाया था। 
लेकिन कमरे के भीतर उसे उसे उठती ख़ुशी के ठहाके , हाँ , अरे , इधर है इमरे , वह ज़ोर से चिल्लाया था पहले ही।  पीटर बोलै ओर दो लड़कियों के साथ जा कर बैठ गया। पीटर खड़ा हो गया , इमरे आगे बढ़ा , उसको गले लगाया ओर उसका चुम्बन लिया।  
- आओ , आओ , हम तो नशे में हैं , पीटर को भी शराब में डुबो दो , एक दोस्त को साथ लाया हूँ ओर दो औरतें भी हैं यहां मुचि से , मचा से नहीं बल्कि मुचि से। नृत्य करने के लिए इधर आई है , आज दोपहर ही पहुँचे हैं , इनके पिता अच्छे दिल वाले , जड़बुद्धि को मैं पहचानता हूँ..तभी मेज़ की तरफ इशारा करके बोला - ' आपको इमरे से मिलवाता हूँ। 
लम्बे क़द वाली भूरी लड़की ने अपना हाथ बढ़ाया ,' बंड्याकि मिलित्सा '
उसके बाद दूसरी ने हाथ बढ़ाया , "  जोफिका "
तीसरा युवा वकील ,बेला ने सिर्फ नमस्ते करी। अजनबी आदमी , छोटा क़द , ४९ की उम्र ,झुलसे हुए चेहरे ने अपना परिचय कुछ यूँ दिया , " जिंगस कान हूँ और किस को इस बारे में पता नहीं लगेगा कि कौन है। 
पीटर ने इमरे को मेलिटस के पास बैठाया और एक बड़े ठहाके के साथ साधारण जाम टकराते हुए बोला , ' पहला गिलास बियर का - मेरा पेट खाली था और दिल भरा हुआ - इमरे के दिमाग़  में उतर गया। 
मिलित्सा बहुत सुन्दर लड़की थी , उनके बीच प्रेम करने के लिए बनी थी , जिसकी दुबली और पतली बनावट अति स्वाभाविक थी।  उसकी गर्दन , हाथ , कमर पतले थे लेकिन उसके कंधे , छाती और आँखों की पुतलियां गोल थी।  चेहरे की बनावट दिलकश थी लेकिन उसके होंठ मोठे भरे हुए थे , हाथ की उँगलियाँ लम्बी थी लेकिन स्पंजी थीं। 
उसने उस बैठक में बाई तरफ बैठे इमरे से बातचीत शुरू कर दी थी ,दाईतरफ बैठे बेला को एकदम नकार दिया था।  इमरे को इस बारे में थोड़ी जानकारी थी कि बुजुर्ग बोड़ाईकी पहले तबाह हो चूका था और फिर मर गया था। मुश्किल से जी रहे थे , जब आखिर में उसकी माँ ने पीटर को लिखा था जोकि सब वकीलों को पहचानता था , जो मूचि में सरकारी काम से के बार जा चुका था , कि उन दो लड़कियों की तस्वीरों की मदद से बोड़ाईकी के पुराने  मित्र टोफल चाचा को ढूंढ निकाले जिसके पास बुदापेश्त में नाईट क्लब है। 
नाईट क्लब वालों ने तस्वीरों को देख कर फ़ौरन लड़कियों को बुला भेजा था।  वे सर ऊँचा कर ट्रेन में बैठ गए , वहाँ पता चला कि क्रिसमिस ईव  कि कारण क्लब  बंद है , सिर्फ त्यौहार के बाद ही उन्हें काम मिल पाएगा। पार्टी ड्रेस का भी पहले से ही  इंतिज़ाम  करना है , उन्होंने पीटर को ढूंढा जोकि हैरान था कि वे लोग इधर आ पहुँचे , उसकी माँ पूछ रही थी कि दो लड़कियां क्रिसमिस मनाने आई है , माँ लेट गयी और अब वो इधर हैं 
वो अनाथ इकहरे बदन की , छोटी स्कर्ट में जिसमें बैठने की छोटी जगह , वाकई चमकती....इधर उधर से रफ़ू हुआ  ब्लाउज , जिसके आखिर में हमेशा ...
और औरत की ग़रीबी और विचार की  दो ख़ास निशानी , छोटी एड़ी वाले जूते और खस्ता बाल। 
मिलित्सा का मुँह कम भूरा और लम्बा था , जोफी का गोल, सफ़ेद और लुपलुपा था।  
अकेलेपन और निर्वासन की आशा में , निर्वासन की कोशिश में ,छोटे ग्रुप ने शोर मचाया और जब आधी रात हो गयी तो मिलित्सा एक क्षण के लिए रोइ थी और पीछे की तरफ अपना सर किया था , अपनी बंद आँखें लिए अपने होंठ चुम्बन के लिए इमरे की तरफ खोले थे।  लड़के ने शांति से आह भरी थी और उसने भी अपनी आँखें बंद कर ली थी।  दोनों जानते थे कि ख़यालों  में दोनों एक दुसरे को चूम रहे है।  लेकिन वो दो अधर जल रहे थे 
और उनके सिरों में धुंध थी , चिल्लाने के लिए वापिस आये थे , ग्रुप के लोग कहि कहि करते हुए उन्हें देख रहे थे , कि उन्हें छोड़ दे , पांच मिनट तक चुम्बन चला था। 
इमरे मुस्कुराते हुए झुका था ,मिलित्सा भी पीछे की ओर , और  पहिए शुरू हो गए थे। उनके आस पास लोग खा रहे थे , पी रहे थे , चिल्ला रहे थे , हँस रहे थे , लेकिन वो सिर्फ चुम्बन कर रहे थे , बेसब्री से , ख़ुशी से , झूमते हुए।  थोड़ा पीते थे फिर चुम्बन , थोड़ा ...फिर चुम्बन , कुछ गुफ़्तगू  और फिर चुम्बन , एक एक ठहाका  और फिर चुम्बन बस चुम्बन। 
अंत तक चुम्बन करते रहे थे , सुबह तक चुम्बन करते रहे थे और उसके बाद एक दूसरे से  कोई  वादा नहीं , कुछ माँगा नहीं ,कुछ बाद में भी नहीं और एक लम्बे चुम्बन के बाद बिछड़ गए थे।
2
दो साल गुजर गए थे और अब मई महीने की शुरआत थी। इमरे ने लीगत में यांका समूह के साथ रात गुज़ारी थी। सुबह जब अपनी गुप्त मुलाक़ात के बारे में बात कर चुके थे तो यंका को एक टैक्सी में बिठाया , अपने पति का हाथ थामे बहुत देर तक अपनी टोपी हिलाती रही थी।  उसके बाद अचानक उदास हो गया था , क्यों , उसको ख़ुद नहीं मालूम था ।  वह शहर में नहीं गया , थोड़ी देर घूमता रहा , उसने अपने सर को झटका दिया जिसमें उसके पति के विचार घूम रहे थे।   
 उसने बड़े और जल्दी क़दमों से लीगत का हरा प्रदेश पार किया और तब वो बहुत थक गया था। अचानक एक बेंच पर बैठ गया। 
अपने आस पास भी नहीं देख सकता था , सड़क के किनारे एक कार आकर रुकी , उससे कुछ क़दमों की दूरी पर , उसमे से एक औरत नीचे उतरी  और आराम से टहलने लगी। लम्बा क़द ,सादा सलेटी रंग की पोशाक , रानी की तरह मेकउप , गर्वीला चेहरा। 
- मिलित्सा !
- इमरे !
-मेरे साथ घूमने आओ। 
-ज़रूर , इमरे उसके साथ घूमने लगा , यहाँ कैसे आना हुआ ?
- अभी नाईट क्लब से फेरी को घर ले गयी और मैं ताज़ा हवा के लिए बाहर आ गयी। 
- फेरी ? वो कौन है ?
- फेरेट्स ग्रॉफ ....आप अच्छे आदमी है , पहले नहीं देखा ?
- शायद। 
देखो इमरे ! अपने जीवन में डर कर रहने की ज़रूरत नहीं है। हमे इस तरह से राज नहीं करना चाहिए कि उन्हें अपने से आगे जाने दे बल्कि उन्हें पकड़ कर जीतना है , मेरे ख्याल से आपके रास्ते पर आ जायेगा , शायद उसकी लगाम हमारे हाथों में है। 
-' घुड़सवारी करती हो ?
-' बहुत , अंग्रेजी घुड़सवारी क्लब में एक फ़्रांसिसी उस्ताद है , नाईट क्लब ?
- अब मैं उसकी हो गयी हूँ , कह कर हँसी थी ।  अब मैं ग्रॉफ कि फूल बन कर ही रहना चाहती हूँ।  फेरी रात को पीता रहा था , अब मखमल कि रजाई ओढ़े सो रहा है। अब मैं वैसी नहीं रही जैसी क्रिसमिस के वक़्त मिले थे , मैं इंतिज़ार कर रही थी वक़्त का। 
- मैं भी ..
- और जानती हूँ कि  आगे बढ़ना संभव नहीं। आपके पास एक ....//  डॉक्टर कि बीवी तुम्हारी यार है।  मुझे सब के बारेमें सब कुछ पता है , मैं सब की ख़बर रखती हूँ , पता तो होना चाहिए ...
- तुम कितनी बदल गयी हो 
- प्रशंसा के लिए धन्यवाद , मैं एक कलाकार बन गयी हूँ , मेरे अंदर का  // फेरी भी पसंद करता है। 
- कब से चल रहा है ?
- एक साल , उससे पहले कुछ साल का संघर्ष , बुरे दिन थे , उसके बारे मैं बात न ही करे तो अच्छा है।  यहाँ देखो झाडी के नीचे कितना सुन्दर 
बेंच है , आओ बैठते हैं। 
हम बैठ गए थे।   
- हमें एक - दूसरे के पास रहना चाहिए था इमरे !
- अब मैं भी यही महसूस करता हूँ। 
- शायद , एक बार साड़ी चीज़े जोड़ते हैं। 
- मेरी प्यारी मिलित्सा , - इमरे ने कहते हुए उसका आलिंगन  कर लिया जोकि बेचैनी और बेसब्री से उसकी आँखों में देख रही थी , फिर उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और उसके अधर चुम्बन कि प्रतीक्षा कर रहे थे , धीरे से , आधे खुले हुए। आदमी खुली आँखों से उस मेकअप वाले चेहरे का चुम्बन करना चाहता था। 
औरत किरमिची लम्बे पंजे , लम्बे हाथों से ऊपर कि ओर उठी , उसने धीरे से आदमी को पकड़ा ओर उसके अधरों पर एक गहरा चुम्बन दाग़ दिया ।   
इस चुम्बन ने एक समुद्री बाढ़ की तरह उन्हें लपेट लिया था , उसके बाद वो बड़ा तूफ़ान धीरे धीरे ठहर गया था।  वे रुकते थे और फिर चूमते थे और आख़िर में  मिलित्सा के अधर इमरे के अधरों से इस तरह धीरे से बिछड़े जैसे कि गुलाब कि पंखुड़ियाँ खिलती हैं। 
अब वह अपने बड़े अधरों के बीच सिगरेट पी रही थी  और उनके आगे कार आ गयी थी। 
- आधा घंटा निकल गया ?  मैंने ड्राइवर को कहा था कि आधे घंटे बाद इधर आ जाये। अच्छा फिर मिलता हूँ। 
- नमस्ते , मिलित्सा ने पूछा- कहाँ 
- कुछ मत बोलो , हमें बिना बोले बिछड़ने की आदत हैं।  
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4
चुम्बन वाली चिड़िया 
प्रेमी ने प्रेमिका से चुम्बन माँगा। 
- " तुम्हें चुम्बन किस लिए दूँ ? " लड़की ने पूछा। 
- " घर ले जाऊँगा " , लड़के ने जवाब दिया , " वहाँ  सोने के पिंजरे में रखूँगा , पहरा दूँगा कि तुम उड़ न जाओ , हमेशा मेरी ही बनकर  रहो , शाम कि तन्हाई में फड़फड़ाओ और संगीत बजाओ जब मैं अकेला हूँ। 
लड़की ने चुम्बन दिया और लड़का नन्ही चुम्बन वाली चिड़िया को घर ले गया। वहाँ सोने के पिंजरे में उसे बंद कर दिया और चिड़िया ने शाम कि तन्हाई में तेज़ आवाज़ में गाया।  लेकिन सुबह पिंजरा ख़ाली था  , चुम्बन वाली चिड़िया उड़ गयी थी। 
दुखी हो कर लड़के ने परी लड़की को ढूँढा और पाया कि चुम्बन वाली चिड़िया वही लड़की के गुलाबी अधरों पर बैठी थी।  अपनी अमीर मालकिन के पास लौट गयी थी। 
लड़के ने फिर चुम्बन माँगा और लड़की ने फिर चुम्बन दे दिया। लड़के ने सोने के पिंजरे के लिए बड़ा ताला  बनवाया लेकिन अगली सुबह चुम्बन वाली चिड़िया फिर उड़ गयी और वापिस लड़की के पास पहुँच गयी। 
जब लड़का अगले दिन आया तो लड़की ने मुस्कुरा कर कहा - ' तुम मेरे चुम्बन कि पहरेदारी नहीं कर पाते  ' 
- " मैं तुमसे शादी कर लूँगा ", लड़के ने कहा ," इस तरह चुम्बन हमेशा हमारे बीच रहेगा।  हम दोनों मिलकर उसके लिए नया पिंजरा ख़रीदेंगे और उसका ध्यान रखेंगे , मिलकर उसकी देखभाल करेंगे कि उसकी ख़ुशी का गीत एक शान के लिए भी रुके नहीं। 
लड़के ने लड़की से शादी कर ली और इस तरह दोनों दोने के पिंजरे में क़ैद चुम्बन वाली चिड़िया कि देखभाल करने लगे। 
और अब चुम्बन वाली चिड़िया हमेशा उनके साथ थी  , इतनी सौम्य थी कि दोनों अपने अधरों से उसको खाना खिलाते थे।  अब वह पहले से भी मीठा जाती थी पहले से अधिक मधुर गाने और दोनों प्रेमी रात दिन सिर्फ उसे ही सुनते थे।  
लेकिन एक - दो महीने बाद चुम्बन वाली चिड़िया की आवाज़ मद्धम पड़ गयी थी।  कभी कभी जाती थी और वो भी दर्दीले गीत।  प्रेमी युगल अब उसका ध्यान नहीं रखते थे , प्रेमी अपने काम में व्यस्त हो गया और प्रेमिका आईने में। कई दिनों तक चुम्बन वाली चिड़िया को कुछ खाने के लिए भी नहीं दिया।  नन्ही चिड़िया कभी - कभी गाना गाती लेकिन ये गीत नीरस , थके - बुझे और उबाऊ होते।  उसके बाद दुखी हो कर सोने के पिंजरे में 
पसर जाती और कई दिनों तक मरी मरी सी रहती। 
एक सुबह लड़के ने हैरानी से पूछा - ' चुम्बन वाली चिड़िया कुछ परेशान है क्या ? ' 
- ' क्यों ? ' लड़की ने पूछा। 
-' मालुम नहीं ...बहुत दिनों से सुना नहीं ...'
दोनों ने मिलकर उसे देखा।  चिड़िया काँपते हुए उनके सामने आख़िर तक भागी थी।  तभी उन्हें ख़्याल आया कि उन्होंने के हफ़्तों से चुम्बन वाली चिड़िया को कुछ खिलाया नहीं था।  चिड़िया वहाँ   नारकीय पिंजरे में ज़िंदा लाश कि तरह पसरी हुई थी। 
औरत ने ठंडी पड़ी चिड़िया को कूड़ेदान में डाला और बैठक की खिड़की की ओर बढ़ गई।  नदी की तरफ एक खिड़की पर एक नवयुवक दिखाई दिया।  दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराये ओर एक दूसरे के अधरों को देखा। ओर एक दूसरे के अधरों पर  चुम्बन वाली चिड़िया देखी जोकि हर आज़ाद चिड़िया की तरह पिंजरे में क़ैद होने पर मर जाती है। 
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नियति 
एक अरबी कवि ने कहा था कि हर औरत के अधरों पर उस आदमी का नाम लिखा होता है जिसके आधार उस औरत का चुम्बन करते हैं। इसके अनुसार ऐसी औरतों के अधर नामों का लेखा जोखा होते हैं लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन क़िस्मत ने अगर तुम्हारा नाम नहीं लिखा है तो हर तड़प ,हर कोशिश कभी भी सफल नहीं होती और क़िस्मत के दरवाज़े कभी नहीं खुलते। और अगर तुम्हारा नाम लिखा है तो औरत कि अवज्ञा और इंकार सब व्यर्थ है , अंत में तुम सुगन्धित चुम्बन वाले पेड़ से चुम्बन तोड़ ही लोगे। ईश्वर ने ऐसा ही इंतिज़ाम किया है , उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ तो बस ठोकरे ही खानी पड़ेंगी।   
उस अरबी कवि ने जो कहा है , वह सच है। अगर सच नहीं होता तो आदमी ऐसे पेचीदे रहस्य को समझा नहीं पाता। ज़िंदगी में रहस्य्मय बातें होती रहती हैं। हम औरतों से मिलते हैं और हमारा दिल उनके चक्कर काटने लगता है , हर किसी कि पहुँच में होती हैं औरतें लेकिन हम फिर भी उनको छू नहीं  पाते।  क्यों नहीं छू पाते ? दूसरे लोग पाँच मिनट के प्यार में ही उनका आलिंगन कर लेते हैं जबकि हम उनसे मिलने को तड़पते रहते हैं।  कवियों कि सच्ची अदाएगी कहाँ गयी ?
हमें उसमे अपना सकून ढूँढना चाहिए कि हम सभी के  बीच तैरता है एक बिचौलिया जिकी आदमी के प्रेम की क्रियाओं को अंजाम देता है।  हमारे जन्म से ही हमारे हिस्से का प्यार तय हो जाता है , उससे अधिक कुछ भी नहीं पा सकते फिर चाहे सौ बार सर के बल खड़े हो जाए।  औरतों का हिस्सा भी तय होता है।  इसीलिए उन पर दया आती है जो हर स्थिति में आँखों से उलाहना देते हैं , बेचारे ये भी नहीं कहते कि सबको प्यार करते हैं और ये भी नहीं मानते कि सबको प्रेम में धोखा देते हैं , मुझे विशवास है कि यह सब प्रेम की अंतिम किताब में पहले से ही दर्ज़ होता है। 
अब से दस साल पहले मैं यह सब नहीं जानता था।  दस साल पहले मैं लगभग पागल हो गया था जब ग्रांड कॉफी हाउस  की खजांची मेरी तेज़ भूख पर हँस पड़ी थी , उसने अपने विनीत और  वायदे को अभी तक नरमाया नहीं था। जबकि मैं उससे बहुत इसरार और वादे करता था। हर तरह के वादे , आकाश से चमकते हुए टारे तोड़ने के साथ हाथ में पकडे अजनबी धातु की सच्चाई तक। लकिन सब कुछ व्यर्थ रहा। 
मारिशका, यह भी याद है कि उसका नाम मारिशका था और वह मेरे बारे में सब कुछ जानना चाहती थी।  मेरे सारे दोस्त उसका हाथ थमने का मज़ा उठा चुके थे , उसकी तरफ भागने वाले सर्बियन व्यापारी ऐसे हाँफ रहे थे  जैसे कि कभी कभी गायब हो जाये व्यापारियों कि छाती पर , उन भागने वालो कि दौड़ में एक मैं ही अकेला था जिसे अभी तक उसके चुम्बन नहीं मिले थे।  किसलिए ? किसलिए ? उस समय नहीं समझ पाया था।  मेरे दोस्त भी नहीं समझ पाए थे जोकि करते थे मेरी सिफारिश और गाते थे क्रूरता के गीत भी।  लेकिन सब व्यर्थ रहा था। मारिशका का क्रोध और ज़िद्दीपन मेरे प्रति तब तक बढ़ता रहा जब तक कि मैंने थकहार कर निराश हो कर इस युद्ध मैं अपनी हार नहीं मान  ली थी। 
 
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