मेरा शहर
मेरे शहर का हर आदमी
व्यस्त है नए नए मुखौटे चढ़ाने में
बस ट्राम जलाने में
हर तरफ उठता धुआँ ही धुआँ
चटकती लकड़ियों से उठता काला धुआँ
अब नहीं रहा निशाँ कोई बाक़ी
शहर के गर्भ में छिपे गाँवों का
मौन मंदिर की घंटियाँ
उजड़ी हुई चौपालें
सूने हुए शिक्षालय
पनघट बदल गया मरघट में
बुझाये डीप वक़्त की करवट ने
जाने कहाँ होगा अब अंत
अँगरेज़ी धुनों पर थिरकते पाँवों का
थक कर ये शहर है सो गया
पर दूर
सीमा पर तैनात सिपाही
जाग रहा है अब भी
आँखों में समाये अपनी
जगमगाता दीप कोई
गुनगुनाता गीत कोई
इस शहर में फिर आएगी सहर
मेरे शहर में फिर बहेगी
एक निर्मल नहर।
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