Sunday, May 21, 2023

गीत - कब आओगे प्राण प्रिय

 इस मन के सूने आँगन में

कब आओगे प्राण प्रिय 


रीत गयी चंदा की किरणें , बुझने लगे सितारे भी 

दरिया की बेबस लहरों से , मिलते नहीं किनारे भी 

पतझड़ भी अब रूठ गया है , रूठी यहाँ बहारें  भी 


इन दर्दीले गीतों को फिर  , कब  गाओगे प्राण प्रिय 


दिल की नगरी उजड़ गयी है  रूठी अब तन्हाई भी 

ग़म में डूबे  नग़मे मेरे ,  गूँगी है शहनाई  भी  

राख़ हुआ चन्दन मन  मेरा  ,धुआँ  बनी  परछाई भी 


बंजर मन में ख़ुश्बू बन कर  , कब छाओगे प्राण प्रिय 


शाम ढली डूबा सूरज भी , नागिन सी डसती  रतियाँ 

पनघट भी अब छूट गया है  , छूट गयी सगरी सखियाँ 

तारे गिनते रात कटी हैं , बीत गयी कितनी सदियाँ


किरनों का सतरंगी रथ तुम , कब लाओगे प्राण प्रिय 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस      

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