लघुकथा : आइस - पाइस
मालूम नहीं था कि बचपन का आइस - पाइस यानी छुपम - छुपाई का खेल कभी व्ट्सअप्प पर भी खेलना पड़ेगा और उसमे होंगे सिर्फ़ दो खिलाड़ी, यानी मैं और मेरी प्रेरणा। कविता लिखने के लिए ज़रूरी है प्रेरणाएँ लेकिन प्रेरणाएँ इस रहस्य को नहीं समझती और कुछ समझ कर भी अनजान बन जाती हैं।
ख़ैर , मेरी ताज़ा प्रेरणा मेरे साथ आइस - पाइस का खेल खेलने के लिए तैयार हो गयी। व्हाट्सप्प पर खेल शुरू हो गया। मुझे लगा ये खेल तो मैं बचपन से खेलता आ रहा हूँ तो आराम से जीत जाऊँगा। लेकिन व्ट्सअप्प के दांव पेंच में मेरा हाथ तंग है। मैं आधी आधी रात जाग कर प्रेरणा को व्ट्सअप्प पर पकड़ना चाहता हूँ लेकिन वो मेरे हाथ नहीं आती। व्ट्सअप्प के हर मैसेज की आहट पर धड़कता है दिल मेरा लेकिन मेरे उबासी लेते लेते वो मुझे छू के भाग जाती है और मैं हैरान ...परेशान ....यक़ीन मानिये बहुत हैरान हो जाता हूँ अपनी प्रेरणा की इन कलाबाज़ियों पर। लेकिन अब मैं इस बात से बिलकुल हैरान नहीं हूँ कि पिछले कुछ दिनों में मैंने ताज़ा प्रेम कविताएँ क्यों नहीं लिखी ?
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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