Saturday, May 20, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 -श्रद्धा और मनु

 श्रद्धा और मनु 


सुनो श्रद्धा !

तुम्हारे स्पर्श से ही मैं मनु बन गया 

तराशने लगा 

तुम्हारे अनछुए सौंदर्य को 

मनु के आलावा कोई दूसरा 

तराश नहीं सकता तुम्हें

मनु ही हैं तुम्हारी नियति 

तुम , मनु की प्रकृति 

हम दोनों ही एक दूसरे के बिना 

आधे अधूरे हैं श्रद्धा 

तुम्हारे बिना मनु का 

अमृत घट भी रीता है

तुम्हारे लिए मनु मर मर कर भी जीता हैं 

जन्म जन्मांतरों का सम्बन्ध हैं 

तुम्हारा मनु से 

मनु के कोरे मन पर 

अंकित है बस तुम्हारे हस्ताक्षर 

हमारे अनंत अटूट प्रेम की भाषा 

सिर्फ वो ही पढ़ पाएगा 

जिसने जाने  अनजाने 

कभी पढ़ पढ़ कर बाँचा होगा 

कबीर का ढाई आखर वाला प्रेम। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 



No comments:

Post a Comment