साँवरिया
साँवरिया ,, कब आएँगे साँवरिया
रूठ गई पायल की रुनझुन
सूख गया माथे का चन्दन
रीत गयी अधरों की सरगम
जीत गया आँसू का क्रंदन
उठती गिरती लहरों - सा मन
लाज में डूबे पहरों - सा मन
रूठ गयी नैनों से निंदिया
छूट गयी माथे से बिंदिया
लौट गए सब गाजे - बाजे
शेष बची काग़ज़ की चिंदिया
बनते - मिटते सपनों - सा मन
भूले - बिसरे अपनों- सा मन
रूठ गए पाँवों से बिछवे
सूख गए तुलसी के बिरवे
आज ज़रा - सी ठेस लगी तो
टूट गए मिटटी के करवे
जलते - बुझते दीपों -सा मन
बिखरे बिखरे गीतों - सा मन
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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