Monday, May 8, 2023

लघुकथा - गुड़

लघुकथा - गुड़  


जब कभी भी नई लघुकथा  लिखता हूँ और उसे दोबारा पढ़ कर  बोलता हूँ  स्वयं को - गुड।  ज़ेहन में जगदीश कश्यप की याद ताज़ा हो जाती है। 

गली कीर्तन वाली , ग़ाज़ियाबाद का वो छोटा सा कमरा जहाँ सुनी थी पहली बार लघुकथा। उनके घर की गोष्ठियों  में  जब भी लघुकथा पढता तो जगदीश कश्यप गुड कह कर मुझे प्रोत्साहित करते। उनका गुड का उच्चारण हिंदी की गुड़ शब्द जैसा होता और होती थी उसमे वैसी ही मिठास। आज जगदीश कश्यप हमारे बीच नहीं लेकिन उनका गुड़ आज भी ज़िंदा है जो मुझे नई नई लघुकथाएँ लिखने के लिए प्रेरित करता रहता है। 

अरे , बातों बातों में लघुकथा हो गयी ,  गुड..गुड़ 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

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