मुहब्बत ज़िंदाबाद
- " अच्छा बताओ , तुम मुझे कितना प्यार करते हो ? " माशूक़ ने अपने आशिक़ से पूछा।
- " उतना ही जितना ये आसमान इस धरती से करता है " आशिक़ ने जवाब दिया।
- ' सच ! मतलब मैं धरती हूँ और तुम आसमान।फिर तो मुझे तुम अपनी बाँहों में समेट लो ' माशूक़ ने तड़प कर कहा।
- 'ये मुमकिन तो नहीं फिर भी उफ़ुक़ बना कर अपनी मुहब्बत का भ्रम तो रखना ही पड़ेगा। ' आशिक़ ने मायूसी से कहा।
- ' मतलब नज़र का फ़रेब.....' माशूक़ ने पूछा।
- ' हाँ , दुनिया में मुहब्बत को ज़िंदा रखने के लिए नज़रों का ये फ़रेब ज़रूरी हैं।' आशिक़ ने जवाब दिया।
" ठीक है , अगर मुहब्बत की है तो फ़रेब भी खाने पड़ेंगे " कह कर माशूक़ ने आशिक के गले में बाहें डाल दी और दोनों मिल कर गुनगुनाने लगें - - मुहब्बत ज़िंदाबाद ... ये मुहब्बत ज़िंदाबाद
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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