Sunday, May 28, 2023

लघुकथा - मुहब्बत ज़िंदाबाद


मुहब्बत  ज़िंदाबाद



 - " अच्छा बताओ , तुम मुझे कितना प्यार करते हो ? " माशूक़ ने अपने आशिक़ से पूछा। 


- " उतना ही जितना ये आसमान इस धरती से करता है " आशिक़ ने जवाब दिया। 


- ' सच ! मतलब मैं धरती हूँ और तुम आसमान।फिर तो मुझे तुम अपनी बाँहों में   समेट लो  ' माशूक़ ने तड़प कर कहा। 


- 'ये मुमकिन तो नहीं फिर भी  उफ़ुक़ बना कर अपनी मुहब्बत  का भ्रम तो रखना ही पड़ेगा। ' आशिक़ ने मायूसी से कहा। 


- ' मतलब नज़र का फ़रेब.....' माशूक़ ने पूछा। 


- ' हाँ , दुनिया में मुहब्बत  को ज़िंदा रखने के लिए नज़रों का ये फ़रेब ज़रूरी हैं।' आशिक़ ने जवाब दिया। 


" ठीक है , अगर मुहब्बत की है तो फ़रेब भी खाने पड़ेंगे  "  कह कर  माशूक़ ने आशिक के गले में बाहें डाल दी और दोनों मिल कर गुनगुनाने लगें - - मुहब्बत  ज़िंदाबाद ... ये मुहब्बत  ज़िंदाबाद 




लेखक - इन्दुकांत आंगिरस    

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