Wednesday, May 17, 2023

लघुकथा - दो सखियों की गुफ़्तगू

लघुकथा - दो सखियों की गुफ़्तगू 


१ - क्या हुआ तेरे को , कुछ दिन पहले तक तो गुलाब की तरह खिली रहती थी , अब मुरझाई कली सी दिखती हो ?


२ - कुछ नहीं...बस यूँ ही ...


१ - कुछ तो बात है , बता , तुझे मेरी क़सम। 


सखी के इसरार करने पर उसने प्रेम कविताओं की एक  किताब उसकेआगे कर दी। 

 

१ - ये क्या है ? किसकी किताब है  ?


२ - उन्हीं की है जिनके लिए ये दिल कभी धड़कता था लेकिन अब नहीं।  ज़रा पढ़ इन प्रेम कविताओं को ....उनकी ज़िंदगी में ज़रूर कोई दूसरी है। 


१ - समझी ..समझ गयी उसके प्रति तेरे अथाह प्रेम को।  लेकिन ये भी तो हो सकता है की ये कवि की निरी कल्पना हो । 


२ - कल्पना नहीं है ...जानती हूँ मैं....


१ - पागल मत बन , एक बार बात कर उससे , हो सकता है उसका ब्रेकअप हो गया हो । 


२ - काश ऐसा ही हुआ  हो - कह कर सखी ख़ुशी से झूम उठी और सखी के गले लिपट गयी। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

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