लघुकथा - दो सखियों की गुफ़्तगू
१ - क्या हुआ तेरे को , कुछ दिन पहले तक तो गुलाब की तरह खिली रहती थी , अब मुरझाई कली सी दिखती हो ?
२ - कुछ नहीं...बस यूँ ही ...
१ - कुछ तो बात है , बता , तुझे मेरी क़सम।
सखी के इसरार करने पर उसने प्रेम कविताओं की एक किताब उसकेआगे कर दी।
१ - ये क्या है ? किसकी किताब है ?
२ - उन्हीं की है जिनके लिए ये दिल कभी धड़कता था लेकिन अब नहीं। ज़रा पढ़ इन प्रेम कविताओं को ....उनकी ज़िंदगी में ज़रूर कोई दूसरी है।
१ - समझी ..समझ गयी उसके प्रति तेरे अथाह प्रेम को। लेकिन ये भी तो हो सकता है की ये कवि की निरी कल्पना हो ।
२ - कल्पना नहीं है ...जानती हूँ मैं....
१ - पागल मत बन , एक बार बात कर उससे , हो सकता है उसका ब्रेकअप हो गया हो ।
२ - काश ऐसा ही हुआ हो - कह कर सखी ख़ुशी से झूम उठी और सखी के गले लिपट गयी।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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