Tuesday, May 16, 2023

लघुकथा - शबरी

 लघुकथा - शबरी 


सेठ जी की तबीयत कई दिनों से खराब थी। छाती में ठण्ड बैठ गयी थी। सेठानी अपने हाथो से दबा दबा के मटन कबाब के टुकड़े सेठ जी को खिलाती जिससे उसमे हड्डी न चली जाये। यह देख कर सेठ जी ने सेठानी से कहा - अरे , तुम तो शबरी बन गयी हो। 

-" कहाँ शबरी और कहाँ मैं , शबरी ने तो मांस त्याग कर श्री राम को  बेर खिलाये और मैं तो आपको मांस खिलाती हूँ.. सेठानी ने संकोच से कहा।

" अरे पगली , बेर या मटन से कोई शबरी नहीं बनता , ये तो बेलाग इश्क़ और पवित्र प्रेम है जो किसी को शबरी बनाता है। आज से मैं तुम्हें शबरी ही कह कर पुकारूंगा। "

सेठानी ने लाज से वो पलकें झुका ली जिन पर सेठ जी ने मोहब्बत के चिराग़ सजा दिए  थे। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस   


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