Wednesday, May 17, 2023

लघुकथा - लाल बल्ब

 

 लाल बल्ब

 

मेरे सामने वाले फ्लैट  में नई पड़ोसन आयी थी। परिचय हुआ तो पता चला कि वो सिंगल मदर ,है और नर्तकी है  , १० साल का बेटा  साथ रहता है। ख़ैर एक अच्छे पडोसी के नाते उनसे कह दिया कि कुछ मदद की ज़रूरत हो तो बता दे , हिचकिचाए नहीं। उसने मुस्कुरा कर सिलसिला आगे बढ़ाया।  

सूरज डूबा तो देखा कि उसके दरवाज़े के बाहर १० वॉट  का छोटा लाल रंग का बल्ब जल रहा था।  मुझे थोड़ा अटपटा लगा। लाल रंग का बल्ब  तो ऑपरेशन थिएटर के बाहर लगता है या फिर तवायफ़ों  के घर के बाहर।  जहाँ ऐसे लाल रंग के बल्ब जल जाये उसे रेड लाइट एरिया बोलते है। .....नहीं , ऐसा नहीं हो सकता। 

उसे ये बात कैसे समझाऊँ। ज़माना ख़राब है , लोग दूसरो के घर के बाहर लाल रंग का बल्ब लगाने की फिराक में रहते हैं। रात काफी गुज़र चुकी थी लेकिन  लाल रंग का बल्ब मुझे सोने नहीं दे रहा  था ।  आख़िरकार मैंने  वो लाल रंग का बल्ब उतारा और वहाँ सफ़ेद रंग का बल्ब लगा दिया।  लाल रंग का बल्ब मैंने अपने पैरों से वही फोड़ दिया।  अगली सुबह मैंने उसे बताया कि किस तरह वो लाल रंग का बल्ब नीचे गिर गया था इसलिये मैंने दूसरा बल्ब लगा दिया। 

बहुत शुक्रिया आपका , आपके जैसा पडोसी भगवान् सब को दे - कह कर खिलखिला पड़ी थी वो। इस वाक़िये को कई  साल हो गए , मेरा लगाया सफ़ेद बल्ब अभी तक जगमगा रहा है।    




लेखक - इन्दुकांत आंगिरस   

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