जो आँगन की .....
जो आँगन की तुलसी के बिरवे में है
वो स्नेह नहीं इन रंग - बिरंगे फूलों में
जो सजनी के अधरों के मिलवे में है
वो गंध नहीं इन रंग - बिरंगे फूलों में
जो पत्नी के पाँवों के बिछवे में है
वो प्रीत नहीं इन रंग बिरंगे फूलों में
जो पत्नी के मिटटी के करवे में है
वो ताप नहीं इन रंग- बिरंगे फूलों में
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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