Saturday, May 20, 2023

प्रेम प्रसंग - गुज़रे बरसो के


 गुज़रे बरसो के....



 गुज़रे बरसो के बीते कसाव कसमसाते हैं

गंध ही रह जाती हैं यहाँ फूल झड़ जाते हैं     


जब से सिलवटें नहीं पड़ी 

तब से उलझनें और बढ़ी 


बरसात में भी निगोड़े ये पाँव जल जाते हैं 


कल्पना को ही सहलाते रहे 

बस यूँ ही मन बहलाते रहे 


कामना से अपनी ही हम जब तब डर जाते हैं 


रात भर टिमटिमाया तारा 

दर्द   यूँ ही   समेटा सारा 


सुधियों के आँगन में जब दीप जल जाते हैं 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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