Saturday, May 20, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - मोजिज़ा

 ये कैसा मो'जिज़ा है 

तू हज़ारों मील दूर  बैठा है 

लेकिन सुनता हूँ रूह में 

तेरी   सदा 

अपनी पलकों में तुम्हें क़ैद कर 

बदलता रहता  हूँ करवटें 

कितना दिलकश , दिलफ़रेब है मंज़र  

हिज्र की रातों में भी 

लूटता  हूँ मुहब्बत  का मज़ा 

इसी का नाम इश्क़ है क्या ?



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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