ये कैसा मो'जिज़ा है
तू हज़ारों मील दूर बैठा है
लेकिन सुनता हूँ रूह में
तेरी सदा
अपनी पलकों में तुम्हें क़ैद कर
बदलता रहता हूँ करवटें
कितना दिलकश , दिलफ़रेब है मंज़र
हिज्र की रातों में भी
लूटता हूँ मुहब्बत का मज़ा
इसी का नाम इश्क़ है क्या ?
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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