Friday, May 5, 2023

लघुकथा - जन्नत की ट्रैन

लघुकथा - जन्नत की ट्रैन 


- " भाईसाहब , ये ट्रैन कहाँ जा रही है ? "


- " आपको कहाँ जाना हैं ? " 


- " मुझे ..मुझे ..मुझे जन्नत जाना है। "


- " जन्नत की ट्रैन तो अगले इतवार को जाएगी , ये ट्रैन तो दोज़ख जा रही है । "


- " अच्छा , अगला इतवार ...तब तक तो बहुत देर हो जाएगी।  "


- " तो इसी में बैठ जाओ , वहाँ से ले लेना जन्नत की ट्रैन।  "


- " हाँ , यही ठीक रहेगा " - कहता हुए  मुसाफ़िर ने ट्रैन में क़दम रखा और  ट्रैन चल पड़ी गोया उसी का इन्तिज़ार कर रही थी। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 


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