बड़ी बुआ
हर दिल अज़ीज़ थी मेरी बड़ी बुआ
परिवार में कुछ भी होता
अच्छा या बुरा
मिलते ही ख़बर
दौड़ी आती थी पहली गाडी से
एक छोटा बैग , एक कंडिया
ज़ाफ़रानी ज़र्दे की पुड़िया
और पिछलग्गू गुड्डू भाई
( उनका कनिष्ट पुत्र - मेरा फुफेरा भाई )
मिलती थी सबसे गले लग के
मिनटों में घर लेती थी संभाल
रखती थी वो सबका ख़्याल
और रात को फुर्सत में
सुनाती थी मुझे दिलचस्प क़िस्से
पुरानी ज़िंदगी के
कुछ अपने , कुछ ग़ैरों के
काम सब निबटा के
लौट जाती थी ख़ुशी ख़ुशी घर अपने
भाई के दिए नेग को लगा सर अपने
जब से नहीं रही दुनिया में बड़ी बुआ
कोई नहीं आता घर अब
ख़ुशी में या ग़म में
बस याद बहुत आती है बड़ी बुआ।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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