Saturday, May 20, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - पतझड़ी पत्तियाँ

 

पतझड़ी पत्तियाँ

 

पतझड़ी साँसों ने उकेरा

एक उदास गीत मेरे मन पर

मेहराबों से उतरती धूप से

लिपटती रही पत्तियाँ

धूप की तपन को

अपने बदन में ढाल कर


धीरे धीरे प्रेम की तपन से

गलती रहेंगी पत्तियाँ

अभी पेड़ो से झड़ कर

धरती पर बिखर जाएँगी पत्तियाँ

प्रेम की पीड़ा में जल कर

सँवर जाएँगी  पत्तियाँ ,


प्रेम का अनंत  गीत गाएँगी  ,

धरती पर बिखरी

पतझड़ी सूखी पत्तियाँ

धीरे धीरे मेरी आत्मा में

पसर जाएँगी  पत्तियाँ ।

 

 कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

 

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