Wednesday, May 17, 2023

लघुकथा - नटनी

 

 नटनी


मेले में नटनी के खेल को देखने लोग उमड़ रहे थे। लगभग ५० मीटर लम्बी रस्सी पर चलती  युवा नटनी। एक तो खेल का रोमांच दूसरे युवा नटनी का ताम्बाई  रंग और चुस्त अंगिया , भीड़ क्यों न उमड़ती। ऐसे दिलचस्प खेलो से ही तो मेले चलते हैं।  

नटनी ने खेल शुरू कर दिया था।  लोग साँस रोके एकटक नटनी को देख रहे थे।   रस्सी के ठीक नीचे जलते अंगारे। अगर ज़रा सी भी चूक हुई तो अंगारे नटनी के  ताम्बाई बदन  को दागने से चूकेंगे नहीं। लेकिन देखते देखते नटनी दूसरे सिरे पर पहुँच गयी और सकुशल ज़मीन पर उतर गयी।   पब्लिक की ज़ोरदार तालियों से आकाश गूँज उठा। लोकल अख़बार के रिपोर्टर ने नटनी से सवाल किया - 

-"आपको डर नहीं लगता , अगर ज़रा  चूक हुई तो आप अंगारो पर गिर जाएँगी "

-" जो डर सो मरा , बचपन से ये खेल कर रही हूँ , आज तक तो नहीं गिरी  " - नटनी ने बिंदास जवाब दिया। 

- "अच्छा , ये बताये कि आपके गुरु कौन है , मतलब ये हुनर आपने किस से सीखा "

नटनी  अपने नंगे पेट पर ज़ोर से  हथेली बजा कर बोली - ये है ....ये पेट है मेरा गुरु , भूख  इंसान के दिल से मौत का डर भगा देती है।

 नटनी के पेट की आवाज़  रिपोर्टर के कानो में  देर तक गूँजती रही थी। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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