Saturday, May 20, 2023

प्रेम प्रसंग - कितना भला लगता है

 कितना भला लगता है


पैर के अंगूठे से उनका ज़मीन का  कुरेदना 

कितना भला लगता है

मानो सम्पूर्ण लज्जा अंगूठे में सिमट गई है


उनकी पलकों का स्वतः उठ कर गिर जाना   

कितना भला लगता है

मानो युगों  की  प्रेम कहानी क्षण में कह गई है


उनका उँगलियों में बार बार पल्लू का लपेटना 

कितना भला लगता है

मानो हल्की हल्की बरसात हो कर थम गई है 


उनके  अधरों  का रह रह कर यूँ थरथराना 

कितना भला लगता हैं 

मानो पूनम की रात सूनेपन को भर गई है


इक मौन इशारे पर उसका वो नज़रे  झुकाना 

कितना भला लगता है

मानो समर्पण में अब कोई कमी ही नहीं हैं 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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