Thursday, May 11, 2023

लघुकथा - किरायेदार

लघुकथा  - किरायेदार 


जब मकान ख़ाली ही कर दिया तो मकान में  ताला क्यों लगा आये - मैंने अपने सहकर्मी से  पूछा । 

- " अरे यार , तुम नहीं जानते , अब मैंने उस मकान मालिक को नाको चने न चबवा दिए तो कहना "। 

- " वो कैसे ? " मैंने जिज्ञासा से पूछा। 

-" आठ - दस साल से पहले तो मुकदमा  ख़त्म होने से रहा और ये भी निश्चित है कि हारूंगा मैं ही ,   लेकिन मुझे बस 500 / महीना किराया ही  तो देना पड़ेगा , दे दूँगा। "

- " लेकिन इसमें  तुम्हारा क्या लाभ होगा ? मैंने उत्सुकता से पूछा। "

- "अरे भाई , जीवन में हर काम अपने लाभ के लिए नहीं किया जाता , दुश्मन के नुक्सान का भी मज़ा लेना सीखो   - उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा। 

 सहकर्मी के इस ब्यान पर मैं इतनी गहरी सोच में पड़ गया , इतनी गहरी सोच में पड़ गया  कि अभी तक सोच रहा हूँ। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 


 

 

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