लघुकथा - किरायेदार
जब मकान ख़ाली ही कर दिया तो मकान में ताला क्यों लगा आये - मैंने अपने सहकर्मी से पूछा ।
- " अरे यार , तुम नहीं जानते , अब मैंने उस मकान मालिक को नाको चने न चबवा दिए तो कहना "।
- " वो कैसे ? " मैंने जिज्ञासा से पूछा।
-" आठ - दस साल से पहले तो मुकदमा ख़त्म होने से रहा और ये भी निश्चित है कि हारूंगा मैं ही , लेकिन मुझे बस 500 / महीना किराया ही तो देना पड़ेगा , दे दूँगा। "
- " लेकिन इसमें तुम्हारा क्या लाभ होगा ? मैंने उत्सुकता से पूछा। "
- "अरे भाई , जीवन में हर काम अपने लाभ के लिए नहीं किया जाता , दुश्मन के नुक्सान का भी मज़ा लेना सीखो - उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा।
सहकर्मी के इस ब्यान पर मैं इतनी गहरी सोच में पड़ गया , इतनी गहरी सोच में पड़ गया कि अभी तक सोच रहा हूँ।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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