फूल बन जाते हैं अंगार वहाँ
शूल कर जाते हैं श्रृंगार जहाँ
रोज़ बिकती हैं बच्चों की मुस्कानें
रोज़ मिटतीं हैं रिश्तों की पहचानें
लाज बिकती है गहना बिकता है
आँख खुलते ही सपना चुकता है
चोर कहलाए पहरेदार यहाँ
हाट में बिकते हैं फ़नकार यहाँ
रोज़ जलते है शमा से परवाने
रोज़ लुटते है क़िस्मत से दीवाने
प्रीत झूटी है यौवन ढल जाता है
आँख मूंदते ही तन जल जाता है
कौन कर पाए फिर प्यार यहाँ
प्रेम बन जाये व्यभिचार जहाँ
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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