वासंती पुरवाई ने
एक वसंत बाहर मेरे , एक वसंत भीतर है
एक अगन बाहर मेरे , एक अगन भीतर है
फूलों के फिर होंठ खुले
नग़मों को भी बोल मिले
झरनों ने फिर गीत रचे
सपनो के फिर दीप जले
चित्रों में फिर रंग भरे
वासंती पुरवाई ने ...
एक चुभन बाहर मेरे ,एक चुभन भीतर है
पहरों के फिर राज़ खुले
अधरों को फिर साज़ मिले
यादों के फिर दीप जले
रह रह कर इक टीस उठे
मधुर मिलन के गीत रचे
वासंती पुरवाई ने ...
एक लगन बाहर मेरे , एक लगन भीतर है
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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