लघुकथा - औलाद मुराद
रामकुमार की शादी को १० साल हो गए थे लेकिन अभी तक कोई औलाद न हुई थी। सभी तरह का इलाज , झाड़ - फूंक करवा चुके थे लेकिन ढ़ाक के वही तीन पात। कुछ लोगो के सुझाव पर एक दिन मंदिर चले गए और ईश्वर के दरबार में अपनी हाज़री लगा दी। आधे घंटे बाद मंदिर से बाहर निकले तो देखा कि उनके स्कूटर की सीट पर सैकड़ो सूराख हो गए थे और वह सीट एक छलनी की तरह लग रही थी।
यह देख रामकुमार का दिमाग़ भन्ना गया। आस - पास नज़र दौड़ाई , कुछ लड़के लट्टू नचा रहे थे। रामकुमार ने उनसे डाँट कर पूछा -
किसने करा है ये ?
तीन ने चौथे की तरफ ऊँगली उठा दी। रामकुमार ने उस १०-१२ साल के लड़के जम कर पिटाई करी और दी गालियाँ - साले , कमीने , सूअर की औलाद .... गालियाँ सुनी भोलेनाथ ने भी और कहा पार्वती से - मैंने कहा था न तुमसे , इन्हें बेऔलाद ही रहने दो। लड़का अभी भी रो रहा था लेकिन पार्वती चुप थी।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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