Friday, May 5, 2023

लघुकथा - तलाशी

 लघुकथा - तलाशी 


कम्पनी के मैन गेट से बाहर निकलते वक़्त वॉचमन मेरी ज़ेबो की तलाशी लेता मुझे रोज़ ज़लील होना पड़ता।  उस शाम मैन गेट के बाहर मेरी पत्नी और  बिटिया मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने मुझे गेट से बाहर निकलते देखा और देखा कि किस तरह वॉचमन मेरी ज़ेबों की तलाशी ले रहा था। मुझसे पहले कंपनी का एक अफ़सर भी निकला था लेकिन उसकी तलाशी नहीं ली गयी थी। 

यह देख मेरी बिटिया ने मुझसे पूछा था - पापा , आपसे पहले निकलने वाले आदमी की तो तलाशी नहीं ली गयी फिर वॉचमन आपकी तलाशी क्यों ले रहा था ?

- " बेटा , तलाशी सिर्फ मज़दूरों की ली जाती है , अफ़सरों की  नहीं " मैंने बिटिया को समझते हुए कहा। 


- " क्यों पापा, अफ़सरों की पतलूनों में ज़ेबे नहीं होती क्या ? "


बिटिया के इस मासूम  सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। 



 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 


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