Wednesday, May 17, 2023

लघुकथा - उपहार

उपहार 

मैं  चेन्नई  के सेंट्रल स्कूल में अध्यापिका थी  और मेरे पति उसी शहर में कॉलेज में प्रोफ़ेसर।  दो साल पहले मेरा तबादला पानीपत कर दिया था , लेकिन मेरे जुगाड़ू पति ने दो साल पूरे  होते होते मेरा तबादला वापिस चेन्नई करवा  दिया था। मैं बहुत ख़ुश थी , मेरे पति मुझे ले जाने के लिए आये हुए थे।  हम ने पानीपत की प्रसिद्ध चीज़े ख़रीदी मसलन दरी , कम्बल आदि और घर का सारा सामान ट्रांसपोर्ट द्वारा चेन्नई के लिए रवाना कर दिया। 
१५ दिन बाद जब ट्रांसपोर्टर का ट्रक आया तो देखा कि जो भी नए उपहार पानीपत में ख़रीदे थे   वो सब रास्ते  में चोरी हो गए थे। पति पुलिस को चोरी हुए उपहारों का ब्यौरा दे रहे थे। तभी पुलिस वाले ने हमसे पूछा - आपने अपनी माँ के लिए कौन सा उपहार ख़रीदा था ? पुलिस वाले का सवाल सुन कर हम अचकचा गए और एक दूसरे को देखने लगे।  वास्तव में हमने माँ जी के लिए कुछ नहीं ख़रीदा था। पुलिस वाला हमारे चेहरों को देख कर बोला , अगर अपनी माँ के लिए एक रूमाल भी ख़रीद लाते तो कुछ भी चोरी नहीं होता।आप लोग जाइये अब , जैसे ही चोर की कुछ ख़बर मिलेगी , आपको सूचित करेंगे। 

हमने अपनी नज़रे झुकाई और पुलिस थाने से बाहर आ गए।  

लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस    

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