Saturday, May 13, 2023

फ़्लैश बैक - ट्रांज़िस्टर

 ट्रांज़िस्टर 


पड़ गया था जब बहुत बीमार 

महीनों रहना पड़ा अस्पताल में 

पिता जी आते थे मिलने रोज़ 

ले आये थे ट्रांज़िस्टर इक रोज़ 

आ गयी थी तब मेरी मौज 

सुनता था मनपसंद गाने 

बहलाता था यूँ अपना दिल 

वक़्त तो था बहुत मुश्किल 

लेकिन गुज़र गया ,

ठीक होने के बाद सब कुछ 

हुआ हासिल ज़िंदगी में 

नहाया मैं हर रौशनी में ,

आज बरसो बाद 

एक  पुराने संदूक में मिल  गया

वोही ट्रांज़िस्टर 

यादों का एक ज़खीरा ताज़ा हो गया 

पिता जी आज नहीं है ज़िंदा 

लेकिन  उस ट्रांज़िस्टर से उभरा 

एक भूला बिसरा नग़मा 

" चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये 

देश हुआ बेगाना "

बजने लगा रात के सन्नाटे में--। 


    कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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