गुल्लू अंकल
बहुत दिलकश और ख़ुशमिज़ाज थे गुल्लू अंकल
बहुत भाता था मुझे
उनके गले में पड़ा मफ़लर
सर्दियों में ऊनी तो गर्मियों में रेशमी मफ़लर
देखा नहीं कभी उन्हें बिना मफ़लर
हफ़्ते में दो - तीन बार आते थे मिलने पिता जी से
करते थे मुझे बहुत प्यार
मेरे पेट को अपनी उँगलियों से
हमेशा गुदगुदाते
मुझे बेतहाशा हँसाते
सालों गुज़र गए छोड़े हुए बाज़ार सीता राम
न हुई उनसे दोबारा मुलाक़ात
ज़िंदगी में बहुत ठहाके लगाए
और जब जब गुदगुदी हुई पेट में
गुल्लू अंकल बहुत याद आए।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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