दर्द के समुन्दर में पीड़ा की धार है
आँसू की कश्ती में जाना उस पार है
कोई तूफ़ान नहीं है , राह आसान नहीं है
काँटों की पलकों में , छुप छुप कर रोती है
सीने में अपने वो फूल ही संजोती है
शाख़ अनजान नहीं है , राह आसान नहीं है
क्षण भर का हँसना है , युग भर का रोना है
जाने किन हाथो का , मानव खिलौना है
एक पहचान नहीं है , राह आसान नहीं है
छत पर हवेली की जी भर कर बरसे है
निर्धन के खेत पर , बूँद बूँद तरसे हैं
मेघ नादान नहीं हैं , राह आसान नहीं हैं।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment