ज़िंदगी जो मिली रौशनी की तरह
दिल बुझाती रही तीरगी की तरह
बस यही इक खता यार मुझसे हुई
हर किसी से मिला आदमी की तरह
प्यास में ख़ुद- ब- ख़ुद वो जला रात दिन
जो मिला था मुझे इक नदी की तरह
भूलने में उसे इक ज़माना लगा
याद आता रहा इक सदी की तरह
आग में सुन ' बशर ' इश्क़ जो था जला
रात में ढल गया चाँदनी की तरह
कवि - बशर बिंदास
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