उन अधरों का चुम्बन हूँ मैं
जिन अधरों का स्पंदन तुम हो
उन बाँहों का घेरा हूँ मैं
जिन बाँहों का बंधन तुम हो
तुम स्वाति की बूँद बनो तो
मैं प्यासा चातक बन जाऊँ
तुम माया का राग बनो तो
मैं भटका याचक बन जाऊँ
उन साँसों का पहरा हूँ मैं
जिन साँसों का जीवन तुम हो
तुम धरती की पीर बनो तो
मैं उड़ता जलधर बन जाऊँ
तुम जीवन का गीत बनो तो
मैं छम छम नूपुर बन जाऊँ
उन सपनों की सूरत हूँ मैं
जिन सपनों का दरपन तुम हो
तुम मुक्ति की राख़ बनो तो
मैं जलता चन्दन बन जाऊँ
तुम पत्थर का ताज बनो तो
मैं दरपन दरपन बन जाऊँ
उस देहरी का पत्थर हूँ मैं
जिस देहरी का चन्दन तुम हो
तुम यौवन का साज़ बनो तो
मैं मीठी ढपली बन जाऊँ
तुम मीरा का गीत बनो तो
मैं किशनी मुरली बन जाऊँ
उन राहों का कंकर हूँ मैं
जिन राहों के नंदन तुम हो
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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