Monday, June 26, 2023

लघुकथा - विशवास

लघुकथा - विशवास 


 उस रात मैं फिर देर से घर लौटा।  उंघती पत्नी मेरी आहट से उठ खड़ी हुई और मेरा कोट उतारते हुए बोली - " बहुत देर लगा दी आज आपने , सब ठीक है ना ? " 

- " हाँ , सब ठीक है , वो दफ़्तर में ज़रूरी काम था , इसलिए रुकना पड़ा। डिनर भी दफ़्तर में ही हो गया है।   " मैंने उतावलेपन से जवाब दिया। 


- "आप मुँह - हाथ धो लीजिए , मैं चाय बना कर लाती हूँ " कह कर  पत्नी रसोई में घुस गई और मैं थका थका वही सोफे में धँस सोचने लगा ' कितनी भोली है ये , मैंने कहा और इसने यक़ीन कर लिया। लेकिन आज मैं इसे ज़रूर बता दूँगा। पत्नी चाय लेकर आई तो  मैंने  उस से कहा - 

" जानती हो कहाँ से आ रहा हूँ मैं ? " 

- " दफ़्तर से और कहाँ से " - पत्नी का जवाब सपाट था। 

- " नहीं मनु , दफ़्तर से नहीं बल्कि मैं एक दूसरी औरत के बिस्तर से उठ कर आ रहा हूँ " मैंने नपे - तुले शब्दों में कहा। 

- " आपके मज़ाक की आदत जाएगी नहीं , अच्छा सुनो , अगर हमारे बेटा हुआ तो हम उसका नाम ' विशवास ' रखेंगे  और अगर बेटी हुई तो उसका नाम ' निष्ठा ' रखेंगे , क्यों ठीक है ना।  " पत्नी चपलता से बोली थी। 


मैंने धीरे से " हाँ " कहा  और पत्नी को अपनी बाँहों में भर लिया। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस   


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