Thursday, June 8, 2023

वसंत का ठहाका - औरत - 3

 औरत और रंग


औरत और रंग का
साथ जन्म जन्म का
औरत के बिना
ये दुनिया
बन जाती है रंगहीन
औरत में घुल जाते हैं
सारे रंग
औरत ओढ़ लेती है
हर रंग की चुनरी
और इस दुनिया को
बना देती है रंगीन
लेकिन जब 
जलती है चिता पर
उसकी रंगीन चुनरी
 रह जाता है शेष
सिर्फ सफ़ेद रंग
तब दुनिया का कोई भी रंग
उस पर चढ़ नहीं पाता
उस सफ़ेद रंग का दुःख
तब कोई नहीं गाता।



कवि -   इन्दुकांत आंगिरस

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