Thursday, June 15, 2023

लघुकथा - नुक़्ता - ए - ज़िंदगी

 लघुकथा - नुक़्ता - ए - ज़िंदगी


कवि मित्र का नवीनतम काव्य संग्रह " जिंदगी " के मुख पृष्ठ पर ही ज़िंदगी लफ़्ज़  बिना नुक़्ते  के छपा  देख मैंने उन से पूछा -" यह एक प्रूफ़ की ग़लती छूट गयी हैं या  आपने जानबूझ या अनजाने में " ज़िंदगी " से नुक़्ते  को निकाल दिया है। 


कवि मित्र हाज़िर जवाब थे , तत्काल बोले - " ज़िंदगी  की भाग दौड़ में कभी ज़िंदगी नुक़्ते के साथ मिली तो कभी बिना नुक़्ते के , लेकिन जैसे भी मिली मैंने भरपूर जिया है इसको " । , 


उनका जवाब सुन कर दिल ख़ुश हुआ और मुझे भी लगा वाकई ज़िंदगी नुक़्ते के साथ हो या बिना नुक़्ते के रहेगी तो ज़िंदगी ही।  ज़िंदगी कोई ' ख़ुदा ' थोड़े ही न है जो नुक़्ता न लगाने से   ' जुदा ' हो जायेगा। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

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