Monday, June 12, 2023

गीत - एक जलते ज़ख़्म - सा गल रहा हूँ लम्हा लम्हा

 एक जलते ज़ख़्म  - सा गल रहा हूँ लम्हा लम्हा 

चाँदनी की आग में जल रहा हूँ  लम्हा लम्हा 


धूप - सी किरचों - सा मन पतझड़ी जंगल में पसरा 

शबनमी  आँसू  से  जब    प्रीत का रीता वो क़तरा 

दर्द की अनगिन कथाएँ लिख गया  सूखा वो गजरा 


दर्द के इस गीत में , ढल रहा हूँ लम्हा लम्हा 


एक आँसू घर गया जो ज़िंदगी की हर ख़ुशी में 

राख  ही बस राख अब रह गयी इस ज़िंदगी में  

तीरगी ही तीरगी बस  इश्क़ की इस रौशनी  में 


इश्क़ की इस आग में , जल रहा हूँ लम्हा लम्हा 


पीर की ठहरी नदी , ग़म में डूबा इक समुन्दर 

उम्र भर लिखता रहा नाम तेरा हर लहर पर 

डूबते सूरज के सँग मुंतज़िर हूँ हर सफ़र पर 


पीर की इस राह पर चल रहा हूँ लम्हा लम्हा  




कवि - इन्दुकांत आंगिरस




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