आज हृदय की बात न सुन
टूट गए सब प्रेम के बंधन
एक भरम ही है शायद
इन फूलों का खिलना भी
एक चलन - सा लगता है
अब तो तन का मिलना भी
आज स्नेह के शब्द न चुन
सूख गया है मन का उपवन
सिर्फ समय की नियति है
इन साँसों का चलना भी
एक भरम है सूरज का
इन दीपों का जलना भी
आज समय की बात न सुन
मूक हुई साँसों की धड़कन
एक प्रसव की पीड़ा है
इन गीतों का रचना भी
और इन्हीं के साथ जुड़ा
मेरा जीना मरना भी
आज ख़ुशी के गीत न बुन
आज बहुत बोझिल है मन
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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