दिल की पुकार का, मुफ़लिस के प्यार का
टूटे हुए साज़ का , डूबती आवाज़ का
ज़िक्र ही करे ने जो , गीत ही वो क्या
पंछी की प्यास का , बादल की आस का
बीते हुए काल का , आने वाले साल का
ज़िक्र ही करे ने जो , गीत ही वो क्या
लाजो की लाज का , जलते हुए आज का
टूटे हुए काँच का , बढ़ती हुई आँच का
ज़िक्र ही करे ने जो , गीत ही वो क्या
ग़ैरों के घाव का , डूबती इस नाव का
टूटे हुए भाग का , तन -बदन की आग का
ज़िक्र ही करे ने जो , गीत ही वो क्या
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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