शब्द कोई प्रेम भरा , अब मुझ को न लिखना तुम
मेरे जलते ज़ख़्मों पे , अब मरहम न रखना तुम
टूटा दिल उजड़ी बस्ती , बिखरा हुआ फ़साना हूँ
मुरझाए फूलों पे पसरा , एक अदद दर्दाना हूँ
इस टूटी सरगम से अब गीत कोई न रचना तुम
अपने ज़िंदा ज़ख़्म को आज कफ़न पहनाया है
आज ही टूटा दिल मेरा बरसों में मुस्काया है
इन भीगी पलकों पे अब दीप कोई न रखना तुम
मेरा दिल सूना मरघट इसमें कौन रहेगा अब
छोड़ गए मुझ को तन्हा जलते चन्दन वन में सब
इस जलते चन्दन से अब तिलक न कोई करना तुम
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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