Tuesday, June 13, 2023

गीत - हर अधर का गीत बन कर गुनगुनाना चाहता हूँ

 हर अधर का गीत  बन  कर   गुनगुनाना चाहता हूँ 

हर हृदय का मीत बन कर खिलखिलाना चाहता हूँ


साज़ मैं मृत्यु का  हूँ पर   ज़िंदगी के   गीत गाता

फूल मैं सावन का हूँ पर हर चुभन के गीत गाता    

अश्क मैं पीड़ा का हूँ पर हर ख़ुशी में मुस्कुराता 


इस अधर से उस अधर तक मुस्कुराना चाहता हूँ 



ख़ून मैं दुश्मन का हूँ पर   दोस्ती के काम आता 

अर्क मैं यामा का हूँ पर हर नयन के काम आता 

दीप मैं मातम  का   हूँ पर तीरगी में जगमगाता 


इस नज़र से उस नज़र तक जगमगाना चाहता हूँ 


काम मैं नेकी का हूँ पर हर बदी के साथ जाता 

राज़ मैं जीवन का हूँ पर आदमी के साथ जाता 

राग मैं यौवन का हूँ पर हर क़दम पे लड़खड़ाता 


इस क़दम से उस क़दम तक लड़खड़ाना चाहता हूँ 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

   

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