Tuesday, June 27, 2023

गीत - ठहरी पीर नदी सी यह प्रेम कहानी है

ठहरी  पीर  नदी  सी,  यह  प्रेम  कहानी  है ।

मुझ से  इस पीड़ा  की,  पहचान  पुरानी  है।।


आग लगाए शीतलता ज़ख़्मी दिल तड़पाए 

टूटे तारों की वीणा अब ग़म का  नग़मा गाए 

बिरहा की अग्नि में दिल मेरा जलता जाए 


जलते इस दामन से ये आग बुझानी है 

 ठहरी पीर नदी सी........


जन्मों का बंधन भी टूटा अब बनते बनते 

राख़ हुआ साया भी बिरहा में जलते जलते 

डूब गया सूरज भी आँखों में भरते भरते 


डूबे इस सूरज से ये शमा जलानी है 

 ठहरी पीर नदी सी........



आँसू रीत गए अब तो शबनम के क़तरों से 

साहिल रूठ गए अब तो दरिया की लहरों से 

तोडा दम बहारों ने पतझड़ के पहरों से 


मुरझाए  फूलों से ये चिता सजानी है 

ठहरी पीर नदी सी........



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 



पुरवैया  आग लगाए,  ज़ख़्मी  दिल तड़पाए ।

टूटे  तारों की  वीणा,   ग़म  का  नग़मा  गाए ।

विरहा की अग्नि में दिल,हरपल जलता जाए ।

कलम   स्याही   से  ही, अब प्रीत निभानी है।।

मुझसे इस पीड़ा........


टूटा जन्मों का बंधन, दो चार कदम ही चलके ।

सँग छोड़ गया साया भी, बीच  ड़गर में  डरके ।

डूबा ख़ुशियों का सूरज, तम नाच रहा हँस के ।

नवजीवन की फिर से ,   इक शमा जलानी है।।

मुझसे इस पीड़ा ........



आँसू  भी रीत गए अब , शबनम के क़तरों से ।

साहिल भी  देखो रूठे ,  दरिया की  लहरों से ।

निकला उपवन का दम भी,पतझड़ के पहरों से।

मुरझाए   फूलों  की ,  हर   साँस   बचानी  है।।

मुझसे इस पीड़ा........





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